चौराहे पर खड़ी औरों की
जिंदगी लगे बड़ी मजेदार ।
आए जब खुद की बारी
तब तू क्यों मुंह लजाए ।।
देख दुनिया भई वाबरी
फैशन के दौर में ।
न आँखों में शर्म बची
न तन पर लिबास।।
पैसों की गरमाहट में
मानव कैसा अकड़ा जाए।
देश अपना छोड़के
विदेश में लिया घर बसाए।।
बूंद बूंद को धरती तरसे
तब तू कैसे जल पाए।
हुआ मानव कैसा बावरा
खुद ही विनाश किए जाए।।
डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया
'हेमाक्ष'