Tuesday, January 7, 2020

चार अलग अलग रिपोर्ट्स ' हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक' के विमोचन पर।





























*हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक का विमोचन संपन्न*

 सांताक्रूज, मुंबई, 4 जनवरी 2020, वैदिक दर्शन प्रतिष्ठान के तत्वाधान में आयोजित पुस्तक के विमोचन का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। आयोजन की रूपरेखा तीन चरणों में  विभाजित की गई थी। समूचे कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर सुधाकर मिश्रा और डॉक्टर शीतला प्रसाद दुबे जी थे। पहले चरण में तीन लेखकों द्वारा लिखित नाटक संग्रह जिसका नाम 'हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक' का विमोचन किया गया। नाटक संग्रह के रचना प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए पुस्तक में शामिल लेखक, जनाब असलम मुलानी ने अपने विद्यालय के भूतपूर्व प्राचार्य श्री चतुर्वेदी जी को समर्पित किया। बकौल जनाब असलम नाटक लिखने की प्रेरणा उन्हें चतुर्वेदी जी से प्राप्त हुआ था। इसी कड़ी में पुस्तक में शामिल लेखिका, डॉक्टर पूजा हेमकुमार अलापुरिया जी ने कहा कि, नाटक किशोर मन को रचनात्मकता की ओर प्रेरित करते हैं। इनके माध्यम से उनकी अनियंत्रित ऊर्जा को रचनात्मकता की ओर मोड़ा जा सकता है। यह परखा हुआ सच है ऐसा उन्होंने किया है और इसलिए पूरे अधिकार के साथ इस बात को अपने वक्तव्य में कह रही थी। 
नाटक संग्रह के तीसरे महत्वपूर्ण लेखक तथा समूचे पुस्तक के संपादक डॉक्टर जितेंद्र पांडे जी ने  कहा कि, "नाटक चरित्र निर्माण का सशक्त माध्यम होता है। " और यह बाद भी पका हुआ सच है, कोई मोहनदास जब सत्यवादी हरिश्चंद्र से संबंधित नाटक को देखता है तो उसके जीवन में सत्य के प्रति आग्रह एक आंदोलन का रूप लेकर विकसित होने लगता है। भारत का आधुनिक इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। पुस्तक के संबंध में सबसे उल्लेखनीय वक्तव्य युवा साहित्यकार श्री पवन तिवारी जी ने दिया। अपने वक्तव्य के दौरान उन्होंने पुस्तक के शीर्षक पर टिप्पणी करते हुए उसमें ध्वनित शब्द श्रेष्ठ पर एक बार तो दर्शकों के मन में आलोचनात्मक मंथन का बीज भी बो दिया था। उन्होंने सवाल किया कि, "कोई कृति पढ़े जाने से पहले ही श्रेष्ठ कैसे घोषित हो सकती है? " लगा जैसे लेखकों और प्रकाशकों की उपस्थिति में श्री पवन तिवारी जी एक जोरदार वैचारिक आक्रमण करने वाले हैं। जिसका समाधान दे पाना कठिन नहीं तो श्रम साध्य अवश्य हो जाएगा। किंतु उन्होंने ही स्वयं इस बात की घोषणा की कि, "रचना प्रक्रिया के दौरान ही यह सभी नाटक इतनी मूर्धन्य लोगों की नजरों से होकर गुजरा है इन्हें इतनी कसौटी ऊपर कसा गया है, जिसको देखते हुए इसकी श्रेष्ठता में कोई संदेह नहीं रह जाता। शीर्षक में श्रेष्ठ शब्द का होना लेखक त्रय का आत्मविश्वास भी  प्रदर्शित करता है।"
लेखकों के आत्मविश्वास को श्री पवन तिवारी जी ने निराला जी के आत्मविश्वास के साथ जोड़ कर देखा। 
'हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक' पुस्तक विमोचन के बाद 'मनुस्मृति भारत का आदि संविधान' विषय पर परिसंवाद का दूसरा सोपान आरंभ हुआ। इस चर्चा में भाग लेने के लिए, मुंबई से श्री संदीप आर्य और योगेश आर्यावर्ती  तथा हरिद्वार से पधारे प्रमुख अतिथि स्वामी यज्ञदेव जी उपस्थित थे। चर्चा का आरंभ पंडित नरेंद्र शास्त्री जी ने कर्णप्रिय सो मधुर राजस्थानी गीत से किया जो भगवान मनु के  प्रति स्तुति भावना से प्रेरित था। परिसंवाद का निष्कर्ष इतना ही था कि सामाजिक जीवन का प्राचीन धर्मशास्त्र गलत नहीं था। 
कार्यक्रम के तीसरे सोपान में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें भाग लेने वाले कवि श्री पवन तिवारी जी, श्री कमलेश पांडे तरुण, श्री विनय शर्मा 'दीप' और श्री तेजस सुमा श्याम जी शामिल थे। चारों कवियों की प्रतिभा काव्य विधा के अलग अलग शिखर की ओर श्रोताओं को ले जाने में समर्थ रही। 
अंत में अध्यक्ष ने तीनों कार्यक्रमों को एक सूत्र में सफलतापूर्वक संपन्न होने से संबंधित अपना वक्तव्य दिए। अध्यक्ष श्री सुधाकर मिश्र जीने बेटी से संबंधित भावना पर आधारित कविता सुनाने से खुद को नहीं रोक सके वे अपने अध्यक्षीय वक्तव्य के दौरान अपनी कविता से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिये। 


- योगेश सुदर्शन आर्यवर्ती





तुम जलाना दीप बाती का लोकार्पण संपन्न

वैदिक दर्शन प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में नारायण प्रकाशन वाराणसी से प्रकाशित गीत संग्रह 'तुम जलाना दीप बाती' का लोकार्पण किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुधाकर मिश्र ने की जबकि महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । ख्यातिलब्ध युवा समालोचक डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय ने पुस्तक के गीतों को ही पुस्तक-परिचय के रूप में रेखांकित किया । इस क्रम में उन्होंने 'पीर' शीर्षक का एक गीत पढ़ा, "छलक न जाये पीर नयन से / छलकी तो नादानी होगी / रहने दो इसको मन में ही / यह कुछ और सयानी होगी /" अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. मिश्र ने 'आजादी के परवाने' शीर्षक गीत को बड़े मनोयोग से पढ़ा और इतने सुंदर गीत संग्रह के प्रकाशन पर अपनी खुशी जाहिर की । तीन सत्रों में विभाजित इस समारोह में 'हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक' का विमोचन भी हुआ । दूसरे सत्र में समाज का आदि संविधान :  मनुस्मृति' पर एक गंभीर चर्चा-परिचर्चा हुई । तीसरे सत्र में युवा कवि पवन तिवारी, कमलेश पाण्डेय 'तरुण', विनय शर्मा 'दीप', डॉ. अभय शुक्ला और तेजस सुमा श्याम ने अपनी बेहतरीन रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शिक्षाविद प्राचार्य रामनयन दुबे उपस्थित थे । आकाशवाणी मुंबई के वरिष्ठ उद्घोषक आनंद सिंह, नरेंद्र शास्त्री और सुमन मिश्रा ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया । इस अवसर पर महानगर के सैकड़ों शिक्षक, साहित्यकार, मीडियाकर्मी एवं व्यवसायी उपस्थित थे ।

अम्बेडकर ने मूल मनुस्मृति को स्वीकार किया था - स्वामी यज्ञदेव






    वैदिक दर्शन प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में नारायण प्रकाशन वाराणसी से प्रकाशित गीत संग्रह 'तुम जलाना दीप बाती' का लोकार्पण किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुधाकर मिश्र ने की जबकि महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । विशिष्ट अतिथि रामनयन दुबे थे । तीन सत्रों में विभाजित इस समारोह का का दूसरा सत्र "समाज का आदि संविधान : मनुस्मृति" पर था । संदीप आर्य और योगेश मिश्र ने इस पर अपना-अपना  विचार साझा किया । अध्यक्षीय भाषण में पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से पधारे स्वामी यज्ञदेव ने कहा, " मनुस्मृति में समाज विरोधी जो भी अंश मिलते हैं वे प्रक्षिप्त हैं । मनुस्मृति की प्रतियाँ इन्हीं प्रक्षिप्त अंशों के कारण जलाई जाती है । बाबासाहेब ने स्वयं मनुस्मृति की मूल प्रति का समर्थन किया था । मनुस्मृति सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों ने इस पुस्तक के सिद्धांत को अपने यहाँ लागू करवाया है ।" संचालक नरेंद्र शास्त्री जी ने बताया कि यदि किसी को मनुस्मृति से संबंधित कोई भी भ्रम हो तो आर्य समाज में रखी मूल प्रति की जाँच कर सकता है । समारोह का तीसरे सत्र में काव्य संध्या का आयोजन था । युवा कवि पवन तिवारी, कमलेश पाण्डेय 'तरुण', विनय शर्मा 'दीप', डॉ. अभय शुक्ला और तेजस सुमा श्याम की कविताओं का श्रोताओं ने जमकर आनंद उठाया । काव्य संध्या का संचालन सुमन मिश्रा के द्वारा किया गया । इस अवसर पर महानगर की कई प्रमुख हस्तियाँ मौजूद थीं । आभार ज्ञापन डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय ने किया ।





हिंदी के श्रेष्ठ बाल नाटक का विमोचन संपन्न

मुंबई 
वैदिक दर्शन प्रतिष्ठान (रजि) के तत्वावधान में दिनांक 5 जनवरी 2020 शनिवार,आर्य समाज,लिकिंग रोड,सांताक्रूज़ (पश्चिम) मुंबई के सभागृह में परिसंवाद,काव्यसंध्या,पुस्तक विमोचन का समारोह संपन्न हुआ।
कार्यक्रम तीन सत्रों में विभक्त था,प्रथम सत्र में आर. के. पब्लिकेशन, मुम्बई से प्रकाशित पुस्तक "हिन्दी के श्रेष्ठ बाल नाटक" और नारायण प्रकाशन वाराणसी से प्रकाशित "तुम जलाना दीप बाती" का लोकार्पण संपन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुधाकर मिश्र  ने किया । मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे उपस्थित थे । विशिष्ट अतिथि प्राचार्य रामनयन दुबे और प्रमुख वक्ता के रूप में युवा कवि पवन तिवारी मौजूद रहे । अन्य वक्ताओं में गंगाशरण सिंह (समालोचक), शिवम तिवारी, सुमन मिश्रा प्रमुख रूप से विद्यमान थे।प्रथम सत्र का संचालन आनंद सिंह (वरिष्ठ उद्घोषक ,आकाशवाणी मुंबई) ने अपने सुमधुर अंदाज में किया।
लेखकीय वक्तव्य में  डाॅक्टर जितेन्द्र पाण्डेय,अस्लम मुलानी और डाॅक्टर पूजा हेमकुमार अलापुरिया ने पुस्तक की विशेषता पर प्रकाश डालकर अवगत कराया। द्वितीय सत्र में परिसंवाद "समाज का आदि संविधानः मनुस्मृति" विषय पर व्याख्यान,वक्तव्य हुआ,जिसमें मनुस्मृति पर गहराइयों तक जाकर प्रकाश डाला गया।जिसकी अध्यक्षता स्वामी यज्ञदेव (हरिद्वार) ने की मनुस्मृति पर वक्तव्य देने वाले वक्ताओं में संदीप आर्य (मुंबई) और योगेश आर्यावर्ती(मुंबई) थे । संचालन पंडित नरेन्द्र शास्त्री ने किया । तृतीय सत्र में  काव्यसंध्या का आयोजन किया गया ।काव्यगोष्ठी का संचालन सुप्रसिद्ध कवयित्री  शिक्षिका श्रीमती सुमन मिश्रा ने किया ।आमंत्रित कवियों में युवा साहित्यकार पवन तिवारी,वरिष्ठ कवि कमलेश पाण्डेय "तरूण", छंद, सवैया के कवि विनय शर्मा "दीप" ,कवि तेजस सुमा श्याम व डॉ. अभय कुमार शुक्ला ने अपनी-अपनी विधाओं में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। समारोह में उपस्थित सभी अतिथियों, कवियों, साहित्यकारों का सम्मान वैदिक दर्शन प्रतिष्ठान के पदाधिकारियों द्वारा अंग वस्त्र, स्मृतिचिह्न व पुष्पगुच्छ देकर सम्मान किया गया। अंत में डॉ. जितेन्द्र पाण्डेय ने उपस्थित सभी अतिथियों, साहित्यकारों,पत्रकारों व श्रोताओं को अपना अमूल्य समय प्रदान करने हेतु धन्यवाद देते हुए आभार प्रकट किया ।


मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

    मनुष्यता                                               -  मैथिलीशरण गुप्त  विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो...