Wednesday, December 4, 2019

कविता - तेरी बेटी


मायूस न हो मेरी माँ
अब सुरक्षित हूँ मैं मेरी माँ

न डर है इस ज़माने का
बहसी, दरिंदों और हैवानियत का

न शोर है अपने बेगानों का
पवित्र है यहाँ का परिवेश
               
                

                सुख है, चैन है, अमन है
                यहाँ मेरी माँ
                करते हैं सभी स्नेह
                यहाँ मेरी माँ

                            बस तरसती हैं ये निगाहें
                            तुझे देखने को मेरी माँ
                            बेचैन होता है मन
                            तुझसे मिलने को
                            दुखता है दिल
                            तुझे रोता देख मेरी माँ

                  बहुत चीखीं थी
                  पुकारा भी था तुझे 
                  बहुत मेरी माँ
                  हुई बहुत पीड़ा थी
                  मुझे मेरी माँ

                             सन्नाटे में छिप छिपकर
                             लेगी तू कोस उन दरिंदों को
                             छटपटाता होगा तेरा ह्रदय
                             देख उन्हें यूँ आज़ाद
                             सिहर उठती होगी तेरी रूह
                              सोच-सोच हादसे को मेरी माँ

                  रोज़ तिल तिल मरती होगी तू
                  सुनकर औरों की बातें चार
                  हाथों में होती होगी विचित्र-सी
                  बेचैनी लेने को मेरा प्रतिशोध

                             मायूस न हो मेरी माँ
                            अब सुरक्षित हूँ मैं मेरी माँ..!

                -डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया 

हिंदी व्याकरण - भाषा (भाग -2) लिपि , व्याकरण और साहित्य





भाषा (भाग -2)
लिपि (script)
    किसी भी भाषा को लिखने के लिए जिस ढंग को अपनाया जाता है, उसे लिपि कहते हैं I आरम्भ में मनुष्य बोलकर अपने विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करता था I विचारों को स्थायी रूप देने हेतु उसने चित्रों को माध्यम बनाया I चित्रों द्वारा विचारों के आदान-प्रदान करने से चित्रलिपि का निर्माण हुआ I फिर मुख से उच्चारित ध्वनि संकेतों को सुरक्षित रखने हेतु कुछ चिह्नों का प्रयोग किया I ध्वनि पर आधारित इन्हीं चिह्नों को ‘लिपि’ कहते हैं I

·       हिंदी की जननी संस्कृत भाषा है I देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है I देवनागरी को नागरी लिपि भी कहा जाता है I

विश्व की मुख्य लिपियाँ इसप्रकार है :
भाषा
लिपि
भाषा
लिपि
संस्कृत
देवनागरी
मलयालम
शलाका
हिंदी
देवनागरी
पंजाबी
गुरुमुखी
नेपाली
देवनागरी
कन्नड़
कन्नड़
गुजरती
देवनागरी
इंग्लिश
रोमन
मराठी
देवनागरी
फ्रेंच
रोमन
बांग्ला
बंगाली
स्पेनिश
रोमन
तमिल
तमिल
जर्मन
रोमन
असमिया
ब्राह्मी
अरबी
अरबी
उर्दू
अरबी और फ़ारसी मिश्रित
चीनी
चित्रलिपि


Ø भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार निम्नलिखित 22 भाषाओँ को मान्यता प्रदान की गई है :

भाषा
राज्य / देश
भाषा
राज्य / देश
सिंधी
कश्मीर
मराठी
महाराष्ट्र
हिंदी
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, दिल्ली
संस्कृत
प्राचीन भारत
डोगरी
हिमाचल
कश्मीरी
कश्मीर
संथाली
झारखंड (संथाल परगना)
उर्दू
उत्तर प्रदेश
मैथिली
बिहार
कन्नड़
कर्नाटक
बोडो
असम
गुजराती
गुजरात
असमिया
असम
बांग्ला
पश्चिम बंगाल
तमिल
तमिलनाडु
तेलुगु
आंध्रप्रदेश
पंजाबी
पंजाब
उड़िया
उड़ीसा
मणिपुरी
मणिपुर
मलयालम
केरल
कोंकणी
गोवा
नेपाली
नेपाल


व्याकरण
   जिस शास्त्र के माध्यम से हमें भाषा के शुद्ध रूप का बोध होता है,
उसे व्याकरण कहते हैं I व्याकरण शब्दों वि+आ+करण के योग से बना 
है, जिसका अर्थ है पूरी तरह से समझना I
        व्याकरण के द्वारा हमें भाषा के नियमों की जानकारी मिलती है 
और इस जानकारी से हम भाषा को शुद्ध बोलना, पढ़ना और लिखना सीखते हैं I



व्याकरण के घटक

   व्याकरण के मुख्य चार घटक हैं :
(1)        वर्ण विचार – वर्ण विचार में अक्षर के आकर, भेद, उच्चारण, वर्गीकरण, लिखने की विधि आदि के विषय में विचार किया जाता है I    
(2)         शब्द विचार – वर्णों के योग से शब्द बनते हैं I शब्द विचार में शब्दों के भेद, उत्पत्ति, रूप आदि विषय पर विचार किया जाता है I

(3)         पद विचार – इसके अंतर्गत विकारी (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया), अविकारी (क्रिया विशेषण, संबंधसूचक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक) पदों के स्वरूप एवं प्रयोग पर विचार किया जाता है I इसमें दो या अधिक पद मिलकर एक ही शाब्दिक इकाई (विकारी, अविकारी) का काम करते हैं, उसे पदबंध कहते है I 

(4)         वाक्य विचार – इसके अंतर्गत वाक्यों की रचना तथा अलग करने की रीति, अंग, भेद, वाक्य विश्लेषण, विराम-चिह्न, वाक्य के उपविभागों आदि पर विचार किया जाता है I     



साहित्य
   साहित्य – साहित्य शब्द स+हित के योग से बना है, जिसका अर्थ होता है सहभाव अर्थात हित का साथ होना I   
   ज्ञान के संचित कोश को साहित्य कहते हैं I विद्वानों ने अपने ज्ञान को संचित कर जन-जन में प्रेरणा जागृत करने का प्रयास किया I साहित्य के दो वर्ग होते हैं – गद्य और पद्य I
·       
    गद्य के अंतर्गत – कहानी, उपन्यास, निबंध, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, पात्र-लेखन, नाटक आदि आते हैं I

·       पद्य में अंतर्गत – कविता, पद, तुकांत, दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद, कुंडलियाँ, हाइकु आदि आते हैं I  
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डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया

मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

    मनुष्यता                                               -  मैथिलीशरण गुप्त  विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो...