मायूस न हो मेरी माँ
अब सुरक्षित हूँ मैं मेरी माँ
न डर है इस ज़माने का
बहसी, दरिंदों और हैवानियत का
न शोर है अपने बेगानों का
पवित्र है यहाँ का परिवेश
सुख है, चैन है, अमन है
यहाँ मेरी माँ
करते हैं सभी स्नेह
यहाँ मेरी माँ
बस तरसती हैं ये निगाहें
तुझे देखने को मेरी माँ
बेचैन होता है मन
तुझसे मिलने को
दुखता है दिल
तुझे रोता देख मेरी माँ
बहुत चीखीं थी
पुकारा भी था तुझे
बहुत मेरी माँ
हुई बहुत पीड़ा थी
मुझे मेरी माँ
सन्नाटे में छिप छिपकर
लेगी तू कोस उन दरिंदों को
छटपटाता होगा तेरा ह्रदय
देख उन्हें यूँ आज़ाद
सिहर उठती होगी तेरी रूह
सोच-सोच हादसे को मेरी माँ
रोज़ तिल तिल मरती होगी तू
सुनकर औरों की बातें चार
हाथों में होती होगी विचित्र-सी
बेचैनी लेने को मेरा प्रतिशोध
मायूस न हो मेरी माँ
अब सुरक्षित हूँ मैं मेरी माँ..!
-डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया