Tuesday, March 10, 2020

ये रोजमर्रा की जिंदगी

रोजमर्रा की जिंदगी
हमें इतना उलझा देती है 
अपनों से मिलने के सुखद अवसरों को हाथ न आने देती है, पल-पल पर बहानेबाजी 
तो कहीं मानसिक थकान 
न कहलवा देती है, 
अपने कर्तव्यों और दायित्वों के तले, 
इतने सिमट कर रह जाते हैं कि वहां अपने नजर कहां आते हैं, कभी बच्चों की परीक्षाएं 
तो कभी अपनी व्यस्तता,
यूं ही सिलसिला जारी रहता है, 
तरह-तरह से आने मिलने का 
देते रहते दिलासा औ' सांत्वना, 
पर कभी!
पर कभी अपनों से मिलने का  
पल हमें न छू  पाता है, 
न जाने कितनी बार!
हां! न जाने कितनी बार 
बनती-बिगड़ती रहती 
योजनाओं की उधेड़बुन 
पर कहां ?
ताने - बानों में बुनी जिंदगी 
अपनों से मिलने की सुखद 
अनुभूति का स्वाद कहां लेने देती है,
रोजमर्रा की जिंदगी .....

कभी उनकी व्यस्तता 
तो कभी हमारी व्यस्तता 
अपनों से मिलने पर अंकुश लगा देती है,
ये रोजमर्रा की जिंदगी.....!

       डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया

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