नारी के उत्तप्त
हृदय की कौन.
सुनता है अब कौन
गाथा,
अंतस्तल में शोषित
और
मरते अरमान का
बन गया दर्रा,
दिखता है कहीं
जख्मों का हरापन
उसके अश्रु से,
तो कहीं पपडियों की
परतें से पथरीलापन उसका,
कहीं दिखती है
पपडियों में चिरती दरारें भी
उसके टटून-बिखरन सी,
रिस - रिसकर उठने
वाले
दर्द - सी बन गई
उसकी काया भी,
उन्मुक्त भावों को
भी
जकड़ा है
दायरें और
मर्यादाओं की
जंजीरों ने,
नारी के उत्तप्त
हृदय की
सुनता है अब कौन
गाथा |