चौकीदार चाचा नमस्ते, कैसे हो ?
अरे, बिटिया कब आए ससुराल से ? (थोड़ा रुक कर) सब बढ़िया है तुम्हारे परिवार में ?
हां चाचा सब बढ़िया
है I आप सुनाओ I चाची कैसी है ?
बिटिया तुम इतने
सालों में आती हो, खैर खबर ही नहीं तुम्हें I
क्यों चाचा ऐसा क्यों बोल रहे हो आप ?
चाची तो ठीक है ना ?
3 सालों से तुम्हारी
चाची ने खाट पकड़ ली है I उसे उठाने-बैठाने के लिए भी एक
इंसान चाहिए I मैं ठहरा बूढ़ा I अब इस शरीर में इतनी जान नहीं बची है, बस राम भरोसे ही गाड़ी खिंच रही है I
चाचा आज ही आई हूँ I एक दिन चाची से मिलने आती हूँ I
आपका बेटा शंकर है ना
I क्या वह चाची का ख्याल नहीं रखता I अब तो काफी बड़ा हो गया होगा I उसकी शादी हुई या नहीं I
हाँ बिटिया बेटा भी है
और बहू भी I
मगर दोनों ही बेकार I दोनों हमारे किसी काम के नहीं I बहू को तो हम दोनों बुड्ढा - बुड्ढी बिल्कुल नहीं सुहाते हैं I बेटे को भी बहू की बातें सुनाई देती है I छोड़ो बेटा यह तो कर्मों का फल है जैसा बोया होगा, आज वैसा ही काट रहे हैं I
चाचा मुझे आज भी याद है आप अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से
निभाया करते थे I और आज भी... I आपके स्वभाव और अपनेपन में भी कोई कमी नहीं आई है I
चाचा जब हम इस शहर में रहने आए थे, तब आधी रात को पहली बार आपकी आवाज सुनकर मैं काँप गई थी I कई दिनों तक ज्वर से
पीड़ित रही I रात होते ही भय मुझे जकड़ लेता कि अभी खूंखार, भयावह और विशालकाय
वाला कोई आएगा I फिर जोर-जोर से बजती सीटियों के साथ “जागते रहो ! जागते रहो ! की आवाज मेरे कानों को चीरती I मेरे हृदय तल पर एक कौंध-सी उभर गई थी I रह-रह कर मन में ही बात आती कि एक दिन यह व्यक्ति
मुझे चुरा कर ले जाएगा I
अच्छा बिटिया ! मुझे तो पता ही नहीं I बिटिया तुम्हारे हृदय से मेरी भयावहता का भय कैसे निकला I
दोनों खिलखिला कर हँसते हैं I हँसते हुए बिटिया कहती है, “चाचा आज मुझे हँसी आ रही है मगर उन दिनों तो मेरी स्थिति बहुत भयावह थी I
बिटिया हँसो, मगर बता तो दो…...I
हाँ-हाँ, चाचा बताती हूँ I मम्मी-पापा ने खूब समझाया, मगर मैं मानने के लिए तैयार ना थी I
अरे ! चाचा खड़े क्यों हो ? अंदर आ जाइए I क्या सारा किस्सा यहीं देहरी पर ही सुनोगे I
नहीं-नहीं बिटिया I मैं यही ठीक हूँ ...I
अरे चाचा कैसी
जिद करते हैं आप I अंदर आ जाइए I
नहीं बिटिया I
यहीं देहरी पर बैठ जाता हूँ I अब तुम बताओ फिर क्या हुआ ?
हाँ चाचा बताती
हूँ I मुझे आज भी याद है कि किस तरह से आपका परिचय हुआ था I मैं उस दिन को कभी
नहीं भूल सकती I
क्यों बेटा ? ऐसा क्या हुआ था जो
मेरे परिचय का दिन तुम्हारी स्मृति में आज भी समाया हुआ है I
जी चाचा I रात की चौकीदारी के उपरांत अगली सुबह
आप अपनी तनख्वाह लेने घर-घर दस्तक दे रहे थे I पापा घर पर ही थे I मैं और पापा छत
पर रखे पौधों पर पानी छिड़क रहे थे I तभी आपने पड़ोस वाले ताऊजी के घर का कुंडा खटखटाया
I काफी देर तक दरवाजा खटखटाने पर भी भीतर से कोई प्रतिक्रिया न दीखाई दी I आपने एक
बार और प्रयास किया शायद कोई दरवाजा खोल दे I मगर ....I आप निराश हो हमारे घर की
ओर कदम बढ़ा ही रहे थे कि ताऊ जी के बड़े बेटे ने दरवाजा खोला I दरवाजा खुलते ही
आपके चेहरे पर उम्मीद की एक लहर दौड़ पड़ी I आप मुस्कुराते हुए मुड़े ही थे कि तभी
संजीव भैया भार्राते स्वर में आप पर बरस पड़े I
क्यों भई अँधा–बहरा
है क्या तू ? समझ नहीं आता क्या ? जब एक बार में दरवाजा नहीं खोला तो उसे पीटने की
क्या जरूरत है I (संजीव चौकीदार से कहता है )
साब जी मैं तो ...I
क्या मैं तो ?
साब जी मैं तो
अपने पैसे लेने आया था I
अरे! कैसे पैसे
? क्या हमने तुमसे लिए हैं ? या तू देकर भूल गया है I
नहीं साब जी I
मैं तो रात की चौकीदारी के पैसे मांग रहा था I
कैसी चौकीदारी
I तुम सबके सब निठल्ले हो I रात को मुहल्ले में जो चोरियाँ होती है उसमें तुम लोगों
का ही हाथ होता है I चौकीदारी के नाम पर रात को चोरियाँ करवाते हो तुम I आज तो आ
गया है फिर से दिखाई न देना यहाँ I चोर कहीं के I
साब जी गाली मत
दो I हम पूरी इमानदारी से चौकीदारी करते हैं I
हाँ, हाँ, हमें
पता है कि तुम कितनी ईमानदारी से ....I
साब जी मेरा
मेहनताना दे दो I
मेरे घर से तुम्हें
कुछ नहीं मिलेगा I अपना रास्ता नापों ...I
संजीव भैया ने
न जाने क्या- क्या आरोप आप पर थोपने शुरू कर दिए I आप बड़ी शालीनता और धैर्य बांधे
चुपचाप खड़े रहे I
संजीव भैया के
ऊँचे और कटु स्वर ने पूरे मुहल्ले को इकट्ठा कर लिया I
पापा ने छत के
छज्जे से जो दृष्टि गली में फेरी तो देखा पूरा मुहल्ला इकत्रित हो चुका है I पापा
मुझे साथ लेकर गली की ओर दौड़े I एक निर्दोष और इमानदार के साथ कैसी नाइंसाफी की जा
रही है और सब तमाशा देख रहे हैं I
क्या हुआ संजीव
? पापा ने भैया से पूछा I
चाचा जी देखो
कैसी धौंस जता रहा है, ये दो टके का चौकीदार I एक तरफ कामचोरी करते हैं और दूसरी
तरफ पैसे मांग रहा है I
हाँ संजीव तुम
ठीक कह रहे हो I
पापा की बात
सुन संजीव की ख़ुशी का ठिकाना न रहा I मगर आप (चौकीदार) की निराशा स्पष्ट झलक रही
थी I वहाँ उमड़ी भीड़ भी यही सोचने लगी की संजीव अब तक जो कह रहा था सब ठीक था I
लोगों के चेहरे पर भी चमक सी आ गई I मैं चुपचाप सब सुन और देख रही थी I
संजीव एक बात
बताओ हमारे मुहल्ले में अब तक कितनी चोरियाँ हुई है ?
एक भी नहीं
चाचाजी I
कभी कोई हत्या
या खून खराबे की बारदात हुई है क्या ?
नहीं चाचाजी I
आधी रात को
किसी के घर में घुसने की कोई घटना ?
नहीं चाचाजी I
देर रात को
लौटते समय तुम्हारे या परिवार के साथ कोई छेड़-छाड़, बतमीजी, झडप, लूटपाट आदि ऐसा
कुछ हुआ क्या ?
नहीं चाचाजी I
ऐसी कोई रात जब
तुम्हारा परिवार असामाजिक तत्वों की चिंता के कारण ठीक से सो न पाया हो ?
नहीं चाचाजी I
ऐसा कभी नहीं हुआ I
अच्छा एक बात
और बताओ I
हाँ, पूछिए न
चाचा जी I
तुम्हें हर
महीने ऑफिस से कितनी छुट्टियाँ मिलती है ?
यही कोई चार I
मगर चाचा मैं आपकी बात समझा नहीं I और इन सब बातों से इस बहादुर का क्या मतलब ?
संजीव मतलब है I बहादुर पूरा साल एक भी दिन
नागा किए बिना ही अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को पूरी शिद्दत से निभाता है I कभी
किसी से ज्यादा पैसा नहीं मांगता I जो कोई अपनी ख़ुशी से जो दे देता है, बेचारा
चुपचाप ले लेता है I तुमने इस निर्दोष पर बिना सोचे समझे न जाने कैसे-कैसे आरोप
लगा दिए I अपने प्राणों की परवाह किए बिना पूरी रात निष्कपट भाव से हमारी रखवाली
करता है I संजीव अभी तुमने ही कहा हमारे मुहल्ले में कभी भी ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
जिसके लिए बहादुर को दोषी ठहराया जाए I इनको भी इज्जत प्यारी होती है I ये भी
आत्मसम्मान की भावना रखते है I गरीब जरूर है, मगर सबसे पहले ये हमारी-तुम्हारी तरह
ही इनसान है I
पापा की बात
सुन सभी के चेहरे फीके से पड़ गए I
चाचाजी मुझे माफ़ कर दो I मैं बिना वजह ही
बहदुर पर चढ़ गया I संजीव ने अपनी जेब से पैस निकाले और बहादुर को थमाते हुए क्षमा
मांगी I
बिटिया तुम्हें
तो सब याद है I मैं तो कब का भूल चुका था इस घटना को I
चाचा यही तो
खासियत है आपकी I
बस फिर क्या था
पापा ने घर आकर मुझे बताया कि आप वही हैं जो रात भर जाग कर हमारी रक्षा करते है और
जोर-जोर से सीटी बजाकर कहते हैं “ जागते रहो I” (दोनों खिलखिला कर हँस पड़े I )
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