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नारी के उत्तप्त
हृदय की कौन.
सुनता है अब कौन
गाथा,
अंतस्तल में शोषित
और
मरते अरमान का
बन गया दर्रा,
दिखता है कहीं
जख्मों का हरापन
उसके अश्रु से,
तो कहीं पपडियों की
परतें से पथरीलापन उसका,
कहीं दिखती है
पपडियों में चिरती दरारें भी
उसके टटून-बिखरन सी,
रिस - रिसकर उठने
वाले
दर्द - सी बन गई
उसकी काया भी,
उन्मुक्त भावों को
भी
जकड़ा है
दायरें और
मर्यादाओं की
जंजीरों ने,
नारी के उत्तप्त
हृदय की
सुनता है अब कौन
गाथा |
बात तो सही है।
ReplyDeleteकविता के शब्दों और भावों में वास्तविकता का होना जरूरी है.
ReplyDeleteब्लॉग पढने और और अपना मत देने हेतु धन्यवाद.
जोरदार...
ReplyDeleteRone ke alawa
ReplyDeleteHimmat jutake
Khadha na chahiye
Naya daur..
Naya.. Nirman ke liye
.. Jahan badalne ke liye
Aasuyese nahi sarforoshi chaahiye.