https://youtu.be/pRWXtwglIaE
जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो
अथवा किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताए, उसे कारक कहते हैं । जैसे :-
1.चौकीदार ने सलाम किया और चला गया ।
संज्ञा क्रिया
कारक
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कारक की विभक्तियाँ / परसर्ग
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1.
कर्ता कारक
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o / ने / से / के द्वारा
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2. कर्म कारक
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o / को
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3. करण कारक
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से
(माध्यम / साधन / सहित)
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4.
संप्रदान कारक
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के
लिए
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5. अपादान कारक
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से
(अलगाव)
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6.
संबंध कारक
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का,
के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी
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7.
अधिकरण कारक
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में, पर
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|
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8. संबोधन कारक
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अरे, अजी, हे, हो
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1.कर्ता कारक – कार्य
/ क्रिया को करने वाला ।
2.कर्म कारक – जिस
संज्ञा पर क्रिया का प्रभाव पड़े ।
3.करण कारक – वह
संज्ञा जो क्रिया को करने में साधन बने।
4.संप्रदान कारक – जिस
संज्ञा के लिए क्रिया होती है ।
5.अपादान कारक– जो संज्ञा से
अलगाव(अलग) होने का भाव ।
6.संबंध कारक – दो
संज्ञाओं के बीच संबंध बताने वाला ।
7.अधिकरण कारक – जो
संज्ञा क्रिया के घटित होने का आधार हो।
8.संबोधन कारक – वक्ता
द्वारा संज्ञा को संबोधित करना ।
1.
कर्ता
कारक : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से
क्रिया (कार्य) करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं ।
( परसर्ग चिह्न – शून्य, ने, )
जैसे
:-
1.लड़कियाँ हँस रही है ।
2.छात्र पढ़ कर रहे हैं ।
3.सिरचन ने मुस्कराकर जवाब दिया था ।
4.करामत मियाँ ने
उसे कोरा जवाब दिया ।
5.आवाज ने
मेरा ध्यान बँटाया ।
2. कर्म कारक : जिस व्यक्ति या वस्तु पर क्रिया का
प्रभाव
पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं ।
(परसर्ग चिह्न
– शून्य, को)
जैसे
:-
1.उमा सितार बजा रही है ।
2.मालिक अखबार पढ़ रहे हैं ।
3.सिरचन को लोग यह भी समझते हैं ।
4.मैं बंडल को खोल कर देखने लगा ।
5.पिता जी भैया को बुला रहे हैं ।
6.राम ने रावण को मारा ।
3.
करण
कारक : संज्ञा का जो रूप क्रिया (कार्य)
का साधन हों, उसे
करण कारक कहते हैं । (परसर्ग
चिह्न
– से)
जैसे
:-
1.हमने बस से गोवा घूमने की योजना बनाई ।
2.मानू रेल से अपनी ससुराल चली गई ।
3.बाबू जी ने मुझे फोन से सूचित किया ।
4.कंबख्त ने कितनी बेरहमी से पीटा है।
5.क्या ईश्वर मुझसे कोई सेवा लेगा ।
4.
संप्रदान
कारक : वाक्य की क्रिया जिसके लिए की जा रही
है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं । संप्रदान का अर्थ होता है –देना ।
(परसर्ग चिह्न
– के लिए)
जैसे
:-
1.शरीर को कुछ समय के
लिए आराम मिल जाता है ।
2.दूसरे दिन मैं स्कूल जाने के
लिए तैयार हो रहा था ।
3.लक्ष्मी के
लिए चारा नहीं बचा ।
4.आश्रम के
लिए पैसे माँगने नहीं जाना है ।
5.बहन महिलाओं के
लिए शिक्षा व्यवस्था की जाएगी ।
5. अपादान कारक : संज्ञा के जिस रूप
से किसी वस्तु के दूर हटने या अलग होने का बोध हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। (परसर्ग
चिह्न – से)
जैसे :-
1.रिश्तेदार दूसरे गाँव से मिलने आते हैं।
2.पेड़ से
पत्ते गिर रहे थे ।
3.भोलू साइकिल से गिर गया ।
4.आँखों से आँसू निकले ।
सिरचन रेल के डिब्बे से नीचे उतरा
6. संबंध कारक : जहाँ संज्ञा या
सर्वनाम का संबंध किसी दूसरे संज्ञा या
सर्वनाम के साथ बताया जाता है, उसे
संबंध कारक
कहते हैं । (परसर्ग चिह्न –
का,के,की,
रा,रे,री)
जैसे :-
1.हेतु की
पीठ मजबूत थी ।
2.कितने दिनों की छुट्टियाँ हैं ?
3.बुद्धिराम स्वभाव के सज्जन थे ।
4.बड़े लोगों की बात भी बड़ी होती है ।
5.मेरी
कहानियाँ पत्रिका में छपी है ।
6.तुम्हारी पुस्तक फट गई है ।
7.मेरा
बड़ा भाई फौजी है ।
7.
अधिकरण कारक : वाक्य में क्रिया जिस स्थान अथवा समय पर घटित होती है उस स्थान अथवा
समय का आधार बनाने वाली संज्ञा को अधिकरण कारक कहते हैं । (परसर्ग चिह्न – में, पर)
जैसे :
1. मेज पर पानी का गिलास और पुस्तक रखी है ।
2. टोकरी में फल रखे हैं ।
3. हमारे शहर में एक
कवि हैं ।
4. कुछ योजनाओं पर
अमल भी हो रहा है ।
5. घर में
उनकी हुकूमत थी ।
8.
संबोधन कारक : जब वाक्य में संज्ञा को पुकारा या उसका
ध्यान आकर्षित किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं ।
(परसर्ग चिह्न – अरे,
रे, ओ आदि )
जैसे
:
1.अरे प्रेमा
! ज़रा
पान भिजवाना ।
2.हे
लड़के ! इधर
आओ।
3.अरे
भाई ! झूठ
मत बोलो ।
4.ओ !
मुझ
पर मँडराने वालों ।
कारक
और विभक्तियाँ याद करने का तरीका
कर्ता
ने
कर्म
को
करण
से
संप्रदान
के लिए
अपादान
से
अधिकरण
में,पर
संबंध
का, के, की, रा, रे, री
सम्बोधन हे, अरे