Wednesday, November 27, 2019

मिक्कू

    





      रिसेस की घंटी बजी I सभी बच्चे क्लास से बाहर निकलते हैं I कुछ हाथ धोने, तो कुछ कैंटीन, कुछ अपने भाई-बहन की क्लास से अपना टिफ़िन लेने, तो कुछ स्कूल के मेन गेट पर अपना टिफ़िन लेने I इतने में रोमा मिस क्लास में आती है I देखती है पूरी क्लास में मिक्कू अकेला बैठा है I जैसे ही मिक्कू ने देखा कि रोमा मिस है तो अपना टिफ़िन छुपाने लगा I
      रोमा मिस समझ गई, जरूर कुछ गड़बड़ है I वह मिक्कू के पास गई और पूछा, “मिक्कू आज तुम्हारे टिफ़िन में स्पेशल क्या है ?”
  मिक्कू अपना टिफ़िन छुपाने लगता है I नहीं-नहीं ! कुछ भी स्पेशल नहीं है मिस I बस sss.....!
      “बस, क्या मिक्कू ?”
   मिस आज... मैं टिफिन में ..में ..I
“बोलो ! मैं क्या ?”
मिस मैं बिस्किटस लाया हूँ I
तो इसमें इतना छिपाने की क्या बात ?
(कुछ घबराते हुए ) आप विज्ञान की टीचर है और .....I
मिक्कू चुप क्यों रह गए ? बोलो I
   मिस मुझे टिफिन में चपाती-भाजी, दाल-राइस, पुलाव आदि बिलकुल भी पसंद नहीं है I माँ हर रोज टिफिन रखते समय यह कहती है, “ ये लो तुम्हारा संतुलित और पैष्टिक टिफिन I”
लेकिन हर रोज़ मैं अपना टिफिन दोस्तों को बाँट देता हूँ I वे बड़ा स्वाद लेकर ....I
 तो मिक्कू आज तुम्हारा संतुलित और पौष्टिक टिफिन किधर है ?
मिस मैं हर रोज़ माँ से यही कहता हूँ कि मुझे भी अन्य बच्चों की तरह कैंटीन का खाना पसंद है I मैं उन से पैसे मांगता हूँ, तो वह मना करती हैं I आज उन्होंने मेरी इस हरकत की वजह से मेरे लिये टिफिन नहीं बनाया I
      तो तुम्हारे टिफिन में ये बिस्किटस.....?
दीदी ने रखें ....I
      मिक्कू तुम दुनिया के सबसे लक्की बच्चों में से हो I
वो कैसे मिस ? मुझे तो नहीं लगता I
    नहीं ! ऐसा नहीं है I तुम्हारी माँ हररोज बड़े प्यार से तुम्हारे लिए जल्दी उठकर ताज़ा और पौष्टिक खाना बनती है, ताकि तुम कभी अस्वस्थ न हो इसलिए ....I एक बात और, तुम्हें पाता है कि पूरे स्कूल में तुम उन गिने-चुने छात्रों में हो जो पिछले कई सालों से क्लास में कभी अनुपस्थित नहीं हुए और न ही बीमारी के कारण जल्दी घर गए हो I
    इस बात का पूरा श्रेय तुम्हारी मम्मी को ही जाता है I जो तुम्हें जी-जान से स्नेह करती और यही चाहती है कि तुम सदैव स्वस्थ रहो और जीवन की हर परीक्षा में अव्वल आते रहो I स्कूल में होने वाली सभी प्रतियोगिताओं में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करो I
      रोमा मिस टिफिन की वजह से कैसे ?
    घर में बना खाना संतुलित और पौष्टिक आहार होता है I उस खाने में किसी तरह के रासायनिक पदार्थों और रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है I इसलिए तुम्हारे टिफिन में वे सभी पोषक तत्व होते है जो एक संतुलित भोजन में होने चाहिए I
      संतुलित, पौषक तत्व ......? मैं समझा नहीं मिस I
   हमारे शारीर के लिए प्रोटीन, विटामिन, वसा, खनिज, कार्बोहाइड्रेट आदि की आवश्यकता होती है I इन तत्वों में किसी एक का भी संतुलन बिगड़ने पर हम बीमार पड़ सकते हैं I 
      मिस ये सभी पौषक तत्व हमें किससे मिलते हैं ?
   प्रोटीन दाल, दूध, दही, मछली, अंडा, अनाज, हरी सब्जियों आदि में मौजूद रहते हैं, जो हमारे शारीरिक विकास के साथ-साथ मांसपेशियों व हड्डियों को भी मजबूत बनता है I विटामिन कई प्रकार के होते हैं – विटामिन ए, बी, सी, ई और के I इन विटामिन के भी अपने कई प्रकार हैं I विटामिन किन खाद्य पदार्थों से मिलता है, मैं तुम्हे बताती हूँ – दूध, मक्खन, टमाटर, नीबू, खट्टे रसीले फल, सूरज की किरणें, सोयाबीन, सेब, मूली, गाजर, मांस आदि I
   रोमा मिस की ज्ञानवर्धक बातें सुन मिक्कू की जिज्ञासा बढ़ने लगी I जिज्ञासापूर्वक मिस से कहता है, “मिस कार्बोहाइड्रेट और खनिज के बारे में भी कुछ बताओ न I”
   तो सुनो मिक्कू कार्बोहाइड्रेट गुड, शक्कर, शकरकंदी, शहद, आलू, सिंघाड़ा, अंगूर, आम आदि में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है I ये सभी तत्व हमें उर्जा प्रदान करते हैं I और रही बात खनिज की, तो खनिज पालक, केला, पनीर, बाजरा, मूंगफली, अंडे, नमक, हरी सब्जियों आदि में पाया जाता है I इन खनिज तत्वों से हमें आयोडीन, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और सोडियम मिलता है I आयोडीन घेंघा रोग से बचाता है, कैल्शियम हमारे दांतों की मजबूती को बरकरार रखता है, फास्फोरस हमारी हड्डियों के लिए अति आवश्यक है I यह हमारी हड्डियों को कमजोर नहीं होने देता I हमारे शारीर में बहने वाले रक्त को हिमोग्लोबिन लोहइ से ही मिलता है I सोडियम हमारे शारीर में उचित जल संतुलन बनाये रखने में मदद करता है, इतना ही नहीं यह ह्रदय कि धड़कन को सामान्य बनाये रखने में भी मदद करता है I
मुझे तो पता ही न था कि माँ जो खाना हमें रोज परोसती है, उस खाने में प्रोटीन, विटामिन, खनिज आदि छुपे होते हैं I मिस आज ........ज ...I
 टन–टन–टन रिसेस ख़त्म होने की घंटी बजती है I
 ( ख़ुशी से ) मिक्कू अपनी बात पूरी करते हुए, “थैंक्स रोमा मिस ! आज सिर्फ आपकी वजह से मुझे खाद्य पदार्थो के विषय में इतनी गहन जानकारी मिली I घर पहुंचकर सबसे पहले माँ से सॉरी कहूँगा I मैं उनके स्नेह और अपनत्व को न समझ सका I बिना वजह ही माँ के साथ दुर्व्यवहार किया I मैं आपसे वादा करता हूँ कि आज के बाद बाहर के खाने के लिए माँ से जिद्द नहीं करूँगा और (मुस्कुराते हुए) अब से रिसेस में सिर्फ संतुलित एवं पौष्टिक टिफिन ही रहेगा I अपने दोस्तों को भी इसकी जानकारी दूँगा I वे संतुलित और पौष्टिक भोजन का ही सेवन करें, ताकि वे भी कभी बीमार न पड़े I” motivational story

Tuesday, November 26, 2019

शादी में जरूर आना


    




   पिछले कई महीनों से सलोनी के बैंक के कई काम रुके पड़े थे I अक्सर बैंक जाने की सोचती मगर कुछ न कुछ काम निकल आता और ....I ऑफिस की आज छुट्टी थी तो सोचा यही काम निपटा लिया जाए I वैसे भी बैंक के सभी काम अनमोल ही सँभालते है I घर का फटाफट काम निपटा सलोनी बैंक पहुँची I बैंक में काफी भीड़-भाड थी I सलोनी भीड़ देख समझ गई आराम से एक-डेढ़ घंटा तो लग ही जाएगा I कोई बात नहीं बेटा अब आ गए है तो काम निपटा कर ही जाऊँगी I एक लाइन में कुछ लोग ही खड़े थे I सलोनी ने सोचा पहले यही किया जाए, तब तक बाकी लाइन में भीड़ कम हो जाएगी I सलोनी भी लाइन में लग गई I सलोनी इंतजार कर रही थी अपना नंबर आने के लिए I तभी एक अधेड़ चुलबुली प्रवृति वाली महिला सलोनी के आगे आ कर खड़ी हो गई I सलोनी कुछ कहती, मगर उसके मन ने कहा कोई बात नहीं I उम्र में काफी बड़ी हैं जाने दो I अगर पाँच मिनट ज्यादा लग भी गए तो क्या ? हो सकता है पहले से ही इस लाइन में हो I शायद कुछ अधूरा रह गया होगा और अपने आगे खड़े आदमी से बोलकर गई हों I खैर ...I
      महिला हाथ में सभी कागजात लिए खड़ी थी I हाथों में एक मूवमेंट सी चल रही थी I जिसप्रकार  बच्चों में अपने पसंद की चीज पाने की ललक और उतावलापन होता है, वैसे ही वह भी कुछ उतावलापन लिए हुए थी I
      सलोनी ने उनसे बात करना शुरू कर दिया I शायद बातों की तारतम्यता में उनका उतवलापण कुछ कम हो जाए I काकी आपको फॉर्म भरना है ? लगता है काफी देर से परेशान हैं इस फॉर्म को लेकर I
      हाँ, बेटा फॉर्म तो भरना है I कब से चक्कर लगा रही हूँ कभी इस लाइन में तो कभी उस लाइन में I कभी ये काउंटर पर तो कभी वो काउंटर ... I

कैसा फॉर्म है जो आपको इतना दौड़ा रहे हैं ये लोग ?
 क्या बताऊँ बेटा I बस पूछो मत I “जीवन प्रमाण पत्र” का फार्म भरना है I
जीवन प्रमाण पत्र ? यह किस लिए होता है ?
      सभी पेंशनभोगियों को साल में एक बार जीवन प्रमाण पत्र बनवाना पड़ता है I और यह हर साल अक्टूबर – नवम्बर में ही होता है I बेटा इसके लिए कितनी लम्बी-लम्बी लाइन लगती है I किस्मत अच्छी हुई तो एक बार में ही काम हो जाता है I नहीं तो कभी सॉफ्टवेयर का झंझट तो कभी इन्टरनेट का I बड़ी मुसीबत है I जीने और खाने के लिए पैसा तो चाहिए I ये बुढ़ापे का शरीर और ये ....I
अगर यह फॉर्म न भरा जाए तो ?
  अगर यह फॉर्म नहीं भरा जाएगा तो पेंशन रोक दी जाती है I तब तो इससे भी ज्यादा भाग-दौड़ बढ़ जाती है I
वह कैसे ?
नेक्स्ट ?
( सलोनी के आगे खड़ी महिला काउंटर पर फॉर्म आगे बढ़ाते हुए ) बेटा ये लो I
नाम बताओ ?
फॉर्म में लिखा है न I ( कुछ मसखरी भरे अंदाज में )
काकी मुझे पता है फॉर्म में नाम है I नाम बताओ I
(मुस्कुराते हुए ) मीनाक्षी I
पासबुक लाइ हो ?
हाँ ! (पासबुक आगे बढ़ाते हुए ) ये लो I
वेरीफाई नहीं करवाया फॉर्म ?
पिछली बार तो पहचान के डॉक्टर ने वेरीफाई कर दिया था I
इसबार भी उन्हीं से करवा लेती I
      मैं गई थी मगर डॉक्टर चिल्ला रहा था I मैं क्यों सिग्नेचर करूं I किसी और के पास जाओ I अब बेटा मैं कहाँ – कहाँ धक्के खाऊं? हर महीने तो पेंशन आती ही है, तो वेरीफाई की क्या जरूरत ?
      जरूरत होती है इसलिए ही कहा जाता है I बिना वजह तंग करना हमारा काम नहीं हैI
नौकरी करती हो ?
      मैं ?
हाँ आपसे ही पूछ रहा हूँ I
नहीं I (एक विषण्ण मुस्कान में)
पेंशन खाता है ?
हाँ !
नौकरी करती थी ?
नहीं !
फिर ये पेंशन ?
पति गवर्मेंट जॉब में थे I
अच्छा I फॅमिली पेंशन है I
हाँ, फॅमिली पेंशन है I
बच्चे ?
चार बच्चे है I
(पीछे मुडकर ) कितने सवाल कर रहा है ?
जाने दो काकी I उनका काम है I
फॉर्म बराबर भरा है क्या ? कुछ बाकि तो नहीं I सुबह से चक्कर लगा रही हूँ I कभी एक नं. काउंटर तो कभी ....I
शादी की क्या ?
(बड़ी जोरदार हँसी का फब्बारा छोड़ते हुए ) अभी तो कहा पति गवर्मेंट जॉब में थे I तभी तो पेंशन मिल रही है I कैसी बात करते हो ? पूछने से पहले....I
शादी की क्या ? ( बैंक कर्मचारी फिर से सवाल दोहराता है )
अभी तो बताया I
मेरा मतलब है आपने दूसरी शादी की क्या ?
तोबा-तोबा ! कैसी बात करते हो बेटा I पूरी जिंदगी बीत गई I अब इस बुढ़ापे में दूसरी शादी करूँगी I  
हाँ या ना ...I
नहीं की I
   उस महिला और बैंक कर्मचारी की वार्तालाप लाइन में खड़े सभी सुन रहे थे I कोई कर भी क्या सकता था I
( शर्म से पानी-पानी हुई महिला सलोनी से कहती है ) कुछ भी पूछता है I अच्छा हुआ बच्चे नहीं आए I सुनते तो पता नहीं क्या बबाल होता ...I
      काकी जाने दो उनका काम है I शायद कुछ फोरमल्टी होती होंगी बैंक की I इसलिए ...I
(बैंक कर्मचारी एक फाइल आगे बढाता हुआ ) यहाँ सिग्नेचर करो I डेट और मोबाइल नंबर भी लिखना I
      अधेड़ मिनाक्षी फाइल हाथ में सँभालते हुए कहती है, “पेन है क्या ?”
ये लो काकी I (सलोनी पेन आगे बढाती है )
      महिला साइन कर फाइल आगे बढ़ाती है I
डेट और मोबाइल नंबर भी लिखना है I (कुछ रूखे स्वर में )
 कहाँ लिखना है डेट और मोबाइल ? (महिला सलोनी से पूछती है )
काकी साइन के नीचे डेट लिख दो और बॉक्स के साइड में मोबाइल नंबर I
      मीनाक्षी फाइल वापस करती उससे पहले ही बैंक कर्मचारी बोला, “ तुमने साइन क्यों किए ? बैंक रिकॉर्ड में तो अंगूठा है ? तुम्हारा ही अकाउंट है या किसी और का ?”
      मीनाक्षी कुछ गंभीर स्वर में बोली, “ अकाउंट मेरा ही है I मैं कभी अंगूठा नहीं लगती I पढ़ी-लिखी हूँ I साइन करना जानती हूँ I रिकॉर्ड बराबर चेक करो I मीनाक्षी साठे I लगता है आप किसी और मीनाक्षी से टेली कर रहे हैं I”

मीनाक्षी साठे ! पूरा पेज मीनाक्षी का है I गलती से ‘मीनाक्षी काटकर’ का रिकॉर्ड देख लिया I सॉरी
I
      लगभग दो मिनट बाद काकी का काम हो गया I सलोनी भी सोच रही थी छोटी लाइन सोच कर इस लाइन में लगी थी I मगर कितना वक्त लग गया I चलो जो हुआ I काकी ने अपने सभी पेपर और पासबुक वगैरह समेटी और चलते-चलते बैंक कर्मचारी को कहा, “शादी में जरूर आना !”
  वह सुन नहीं पाया I
      ( बड़े ही मजाकिया और रंगीन मिज़ाज में मीनाक्षी कहती है ) बेटा आपसे कह रही हूँ शादी में जरूर आना I  
      जाते-जाते सलोनी के कान में फूंक मार ही दी, “शादी में जरूर आना I”
 काकी की बात सुन लाइन में खड़े सभी लोग खिलखिला उठे I

Monday, November 25, 2019

today's thought







संसार की कोई भी भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती,
बल्कि बड़े  या छोटे तो मनुष्य के विचार होते हैं।
  
           डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया 

Thursday, November 7, 2019

चैताली


 
 
      तेरह साल की अबोध बालिका स्कूल से घर की ओर बड़े ही चहकते हुए अंदाज में, उछलते–कूदते सहेलियों संग आ रही थी I जैसे ही घर पहुँची तो देखा, बाबा आँगन में बैठे कुछ अजनबी लोगों से बतिया रहे थे I उम्र भले ही तेरह की थी, मगर कद-काठी कुछ ऐसी कि देखने पर ऐसा प्रतीत होता १५-१६ की होगी I गोरी चिट्टी, आँखें बड़ी और भूरी हिरनी सी कुछ विस्मित करने वाली I सीधे कंधे पर लटका बस्ता, अधखुले से बाल, एक चोटी अपनी जगह सही सलामत झूल रही थी और दूसरे के रिब्बन का कुछ अता- पता ही नहीं I अंदर घुसते ही उसने आव देखा न ताव सीधा बाबा से जा लिपटी और अपने बस्ते से स्कूल से मिली अपनी क्लास फोटो दिखने लगी I चैताली अभी तुम अंदर जाओ में बाद में तुम्हारी फोटो देखूँगा I
    ( कुछ लड़ाते हुए ) नहीं, आप अभी देखो I चैताली अभी घर पर मेहमान आए है I हम आराम से बात करेंगे I
बाबा पहले पक्का वादा करो I तभी अंदर जाऊँगी I माँ किधर है ? नजर ही नहीं आ रही है I
   “चैताली ........I” चैताली के बाबा कुछ नाराजगी जताते हुए कहते हैं I
ठीक है; जाती हूँ I (चैताली अंदर चली जाती है I)
   (घर पर आए अपरिचित में से एक व्यक्ति कहता है I ) काफी छोटी है आपकी बेटी चौधरी साब I बचपना तो खूब भरा है I कैसे घर – गृहस्थी संभालेगी तुम्हारी बेटी ?
   “तुम चिंता न करो सरकार I घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी पड़ने पर छोरी सब सीख जाती है I अब अपनी–अपनी घरवालियों को ही देख लो I जब ब्याह के आई थीं वे कौन-सी ज्यादा बड़ी थीं; मगर समय और जिम्मेदारियों ने सब सिखा दिया I” चैताली के बाबा बनती बात बिगड़ न जाए इसलिए बात को सँभालते हुए कहते हैं I
   चैताली की माँ कुछ जरा चाय तो भिजवाना I कितना समय लग रहा है I (आँगन से बैठे-बैठे कुछ ऊँची आवाज में कहता है I) सरकार आपने छोरी देख ली I हमारा घर परिवार भी देख लिया I जब तक जलपान आ रहा है तब तक आगे की बात कर लेते हैं I
   चौधरी साब अगर रिश्ता पक्का हो गया तो ये न समझना कि तुम्हारी छोरी को पढ़ने- लिखने मिल जावेगा I आपने जितना पढ़ाया वही ज्यादा हो गया है I हमसे उम्मीद न करना ....I थोड़ा-सा पढ़ने–लिखने पर आजकल की छोरियों के नखरे घने हो जाते हैं I बात-बात पर अपने पढ़ने का रॉब झाड़ती फिरें हैं I गर तुम्हारी छोरी ने जरा भी मीन-मेक की तो अगले ही दिन तुम्हारी छोरी वापस आ जाएगी I
    न-न सरकार आपको कभी शिकायत का मौका न मिलेगा I म्हारी छोरी घनी समझदार सै I
चौधरी वो तो दीख रा सै I कितनी समझदार है I ....वो तो झोटरमल साब जी ने रिश्ता बताया है तो छोरी देखने चले आए I वैसे म्हारे छोरे ने छोरियों की कमी न सै I म्हारा छोरा कालेज में पढ़ावे सै I घनी तनख्वाह है उसकी I उसने ...
  चैताली की माँ सबके लिए चाय, नाश्ता लाती है I
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बातें आगे बढ़ती हैं I
  उधर चैताली अपनी सहेलियों संग छत पर हँसी-ठिठोलियाँ कर रही थी I इस दुनिया के तौर तरीकों, रस्मों-रिवाजों और सब बातों से अनजान चैताली अपनी ही दुनिया में मशगुल थी I उसके सपने, उसकी भावनाएं, उसका उत्साह जो वह अक्सर खुली आँखों से देखा करती थी I अपनी दुनिया का स्केच वह खुद बना, उसे रंगों से भरने का प्रयास करती I
   आँगन में चैताली के हाथ पीले होने की बातें तह की जा रही थी, उधर चैताली अपनी सहेलियों से अपने जीवन के रंगीन सपनों को बयाँ कर रही थी I आशा तुझे पता है मैं खूब पढ़ना चाहती हूँ I तू देखना मैं खूब पढूँगी I अपने माँ-बाबा का खूब नाम रोशन करुँगी I एक दिन तुम सब मुझ पर गर्व करोगी I हमारे गाँव के स्कूल में एक भी मास्टरनी नहीं है I तुम देखना जब मैं पढ़ लिख जाऊँगी तो अपने ही गाँव के स्कूल की लड़कियों को पढ़ाऊँगी I तब किसी के माँ-बाबा को चिंता न रहेगी कि छोरी स्कूल में मास्टर साहब से कैसे पढ़ेंगी ....I
   चैताली... बड़े – बड़े सपने देखने बंद कर दे I हमारी ऐसी किस्मत कहाँ कि हम खूब पढ़े और अपने मन मुताबिक जी सके...  जिस दिन बाबा को कोई अच्छा परिवार और लड़का मिल जाएगा उसी दिन हाथ पीले कर देंगे I
   “आशा तुम ठीक कह रही हो I हमें तो अपना अच्छा बुरा सोचने और कहने का भी हक़ नही है I माँ हमारे लिए कुछ सोचना भी चाहेगी तो ये समाज उसे जीने नहीं देगा ...I” कुछ रुआँसी सी हो मंजरी कहती है I
   “मंजरी तुम्हे याद है अपनी रेशमा ...I” आशा कहती है 
  हाँ ! हाँ ! बहुत अच्छे से याद है I कितने सपने थे उसकी आँखों में I चैताली की तरह I मगर हुआ क्या ? हम सभी जानते हैं I उसके बापू ने एक अधेड़ से उसका ब्याह करा उसकी जिंदगी दाव पर लगा दी I कहाँ वह मासूम सी 12 साल की लड़की कहाँ वह बुढाऊ ...I कैसे बर्दाश्त किया होगा उसने ? पता नहीं कैसी होगी वह ? रेशमा की खुशियाँ अपनों ने ही निगल लिया I कभी कभी लगता है क्या वाकई में ये हमारे जन्मदाता हैं? हम इन्हीं की संतान है हैं ? समाज की की बातों में अपनी ही फूल सी बच्ची का जीवन चूल्हे की दहकती चिंगारी में झोंक देते हैं I
   तुम दोनों ठीक कह रही हो I मुझे भी रेशमा की याद आती है I जब से उसकी शादी हुई है तब से एकबार भी लौटकर नहीं आई I हर साल अपने गाँव में रेशमा जैसी न जाने कितनी ही लडकियाँ परिवार और समाज के नियमों के मकड़ जाल का शिकार हो जाती हैं I      कोई कुछ नहीं कहता I बस बुत बन तमाशा देखते हैं I समाज के नाम पर बेबुनियादी नियमों, परम्पराओं, संस्कार आदि का चोला पहन तमाशबीन बनाने के अतिरिक्त आता ही क्या है I खेलने कूदने की उम्र में चूल्हा-चौका, पति, नाते-रिश्ते न जाने किन-किन जिम्मेदारियों में उलझा कर रख दिया जाता है I परिपक्व होने से पूर्व ही पंख कतर दिये जाते है I  न अपने मन से हँस सकते हैं और न रो ही ...I तुम देखना आशा और मंजरी मैं अपने साथ ऐसा न होने दूँगी I मैं तो खूब पढूंगी I मैंने तो बाबा से कह दिया है मैं न करूँगी शादी-वादी I
   “चैताली तुम बुरा न मनो तो कुछ कहूँ I” आशा कहती है I
   हाँ, कहो न I भला मैं तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानूँगी I तुम दोनों ही हो जो मेरी बातों को सुनते हो और समझते हो I बाकी सब तो मुझे पागल ही समझते है I टेड़ा-सा मुँह बना के कहते है, “छोरी हो I क्या करोगी पढ़ – लिख कर I न बन रही कोई कलेक्टर - वलेक्टर....I अच्छा कहो क्या कह रही थीं I
   मैंने काल अपनी माँ और बाबा को बात करते हुए सुना था कि आज तुम्हारे घर कुछ मेहमान आ रहे है जो तुम्हें देखने आने वाले है I तुम्हारे बाबा तुम्हारी शादी की बात तय कर चुके है I अगर तुम उन्हें पसंद आ गई तो 2-3 महीने में तुम्हारे हाथ पीले कर सदा के लिए विदा कर दिया जाएगा I तुम्हारे घर के आँगन में जो लोग .....I
   “आशा तुमने गलत सुना होगा I शादी और मेरी I नहीं- नहीं I बाबा मेरी शादी इतनी जल्दी नहीं करेंगे I” पूरे आत्मविश्वास के साथ चैताली अपनी दोनों सहेलियों से कहती है I
   चैताली तुम मानो या न मानो I अब तुम्हारी मर्जी I मगर ऐसा ही ....I तुम भी शायद थोड़े दिनों बाद हमसे काफी दूर चली जाओगी I आज रेशमा को याद कर आँखें नम हुई चली जा रही है I पता नहीं; हम फिर कभी यूँ एक साथ .... I
  नहीं ऐसा नहीं होगा I मैं अभी बाबा से पूछती हूँ I तुम यहीं रुको I मैं अभी आती हूँ I
( मंजरी चैताली का हाथ पकड़ उसे रोकती है I )
   चैताली रुको I आशा ठीक कह रही है I तुम्हारा सबके सामने ऐसे जाना और अपने बाबा से कुछ भी पूछना उचित नहीं है I तुम अपने बाबा से अभी नहीं बाद में ....I
( चैताली कुछ रुष्ट स्वर में ) तुम दोनों को आखिर क्या हो गया है I आज अचानक कैसी बातें कर रहे हो तुम दोनों ? सब कुछ मेरी समझ से परे है I मेरे बाबा, ऐसा नहीं करेंगे I मैं अपने बाबा को बहुत अच्छे से जानती हूँ I वो अपनी चैतू से बहुत प्यार करते है I वो मुझे अपने से दूर नहीं जाने देंगे I ये लोग तो बाबा के कोई परिचित दोस्तों में से होंगे I वैसे भी बाबा से कोई न कोई मिलने आता ही रहता है I ये लोग भी यूँ ही चले आए होंगे I इन लोगों को एक बार चले जाने दो फिर सब साफ हो जाएगा I
(  इधर चौधरी साहब और हीरामल एक दूसरे के गले लग रिश्ता तय होने की मुबारकबाद दे रहे थे I )
   “हीरामल जी आप पंडित जी से अच्छा–सा मुहूर्त निकलवा लीजिए I फिर हम भी शादी की तैयारी में लगे I” चैताली का पिता कहता है I
 तुम चिंता ना करो I पंडित का क्या, वो सब तो हम देख ही लेंगे I
शादी की बात सुन चैताली के पैरों तले जमीन ही सरक गई I खूब मिन्नत की, हाथ पैर-जोड़े मगर चैताली के पिता का दिल ना पसीजा I माँ-बाबा के इस रूप को देख चैताली पूरी तरह टूट गई I अब न दिल में कोई अरमान था, न कोई जज़बा बनने का...I अपने कुचलते सपनों की धरा पर सिर्फ चलता फिरता पुतला थी I
   शादी का दिन भी आ गया I चैताली की हथेलियाँ मेहँदी से रची गई I हल्दी चढ़ी I बन्नी गाई गई I बारात का भी खूब धूमधाम से स्वागत हुआ I चैताली की डोली भी विदा हो गई I  आशा और मंजरी द्रवित और स्तब्ध आँखों से चौखट पर खड़े हो चैताली की डोली ओझल होने तक निहारती रहीं I
   बिहाता चैताली के इस जीवन सूची में सास- ससुर, पति के अतिरिक्त दादी सास, चार ननद और दो देवर भी है I सास और ननद की जुवान कुछ पतली थी I कुछ कहने और सुनाने का मौका न छोड़ती I
   नन्हें नन्हें कोमल हाथों में दस–बारह लोगों की जिम्मेदारियों की डोर I कितनी बार  तो वह समझ ही न पाती कि क्या करूं और कैसे करूँ ? ऊपर से सास ननद का फिराक्त में रहना की चैताली कोई गलती करे और वे उस पर बरस जाए I फूंक-फूंक कर कदम बढाती और राम-राम का नाम ले दिन काटती I पति पारस दूसरे शहर में नौकरी पेशा होने के कारण 15-20 दिनों में एक बार आया करता था I पारस के आने पर चैताली से बढ़ा प्रेमपूर्वक व्यवहार किया जाता I
   चैताली हर बार पारस के आने पर अपने मायके जाने की बात करती मगर माँ-बाबा की सहमती के बिना भेजना उसके लिए मुमकिन न था I
   चैताली के हर बार मायके जाने वाली बात उसे कुछ खटकने लगी I कहीं मेरे घर में चैताली दुखी तो नहीं है I या उसके man में कोई और इच्छा तो नहीं I पारस ने चैताली के मन की बात जानने की कोशिश की I पहले तो वह एक ही बात पर अटकी रही मगर पारस के नम्र और सहृदय स्वभाव में चैताली का मन जीत लिया I चैताली ने जो बोलना शुरू किया बस अपनी बात पूरी करने पर ही रुकी I पारस उसकी मासूमियत और भोलेपण को निहार रहा था कि उसकी पत्नी अबोध बालिका ही है I भले ही रस्मों-रिवाजों ने उन दोनों को परिणय सूत्र में बाँध दिया हो मगर वह आज भी निरी बच्ची ही है I
   पारस चैताली से करता है कि वह उसे मायके भेजने में असमर्थ है मगर उसे अपने साथ शहर ले जाने का बंदोबस्त कर सकता है I
   चैताली पारस की बातों से प्रभावित हो गई I सारी रात हृदय के धरातल पर नई उम्मीद और नव स्वप्न को बुनते – बुनते कब सुबह हो गई चैताली को पता ही नहीं चला I
   अगली सुबह पारस ने चैताली को अपने साथ शहर ले जाने का प्रस्ताव बाबा के सामने रखा I बाबा ने बेटे की तकलीफ समझते हुए हाँ कह दिया मगर माँ और बहनों ने तांडव मचा दिया I यह चली जाएगी तो घर के कम कौन करेगा ? इसी ने साथ जाने की जिद्द की होगी I वरना हमारे बेटे को क्या पता .....I
   पारस माँ को समझता है उसने कुछ नहीं कहा I न ही मैं उसका पक्ष ले रहा हूँ तकलीफ यह है कि मुझे ऑफिस जाने से पहले और आने के बाद खाना पकाना, अपने कपडे धोना सब खुद ही करना पड़ता है I ये रहेगी तो मुझे जरा आराम मिल जाएगा I  पारस ने जैसे तैसे सबको मना लिया I
   अब क्या था, चैताली के सपनों को पंख मिल गए I पारस ने चैताली का नौवीं में दाखिला करवा दिया I शुरू में उसे कुछ अटपटा लगा मगर पारस के विश्वास ने उसका हौसला बढ़ा दिया I चैताली भी मन लगा कर पढ़ने लगी I शाम को पारस के आने से पहले ही घर-गृहस्थी का काम ख़त्म कर लेती I ताकि शाम को पारस पढाई में उसकी मदद करे I घर से लाख बुलावा आने पर भी पारस कोई न कोई बहाना बना देता I अब समय था चैताली की परीक्षा का I खूब मन लगा कर मेहनत की उसने I पारस चैताली का रिजल्ट देख भौंचक्का रह गया I चैताली पूरी क्लास में प्रथम आई थी सभी शिक्षक भी खुश थे उसके रिजल्ट से I
   पारस चैताली के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कहता है कि चैताली आज मैं बहुत खुश हूँ I तुम जितना पढना चाहती हो पढों, जो करना चाहती हो करों मैं कभी भी तुम्हारा हाथ नहीं रोकूंगा I अपने पंखों को थकने मत देना I
   चैताली ने जो रफ्तार पकड़ी बस फिर रुकने का नाम न लिया I इस सफर में पारस और चैताली की संतान के रूप में तीन बेटियाँ ने भी पदार्पण किया I बेटियों के जन्म पर सास ननद ने नाक-मुँह सिकोड़ा मगर किसी की चिंता किए बिना वह आगे बढ़ती रही I घर-गृहस्थी की उधेड़-बुन, बेटियों की परवरिश और अपनी तालीम में कोई कमी न आने दी I
   चैताली ने आठ विषयों में एम.ए.  की उपाधि के अतिरिक्त बी.एड., पीएच. डी. की भी उपाधि ग्रहण की I अपने शैक्षणिक बल और सूझबूझ हेतु वह जूनियर कॉलेज में सरकारी नौकरी में सहायक शिक्षिका पद पर कार्यरत है I चैताली को उसकी दक्षता और कुशलता के लिए श्रेष्ठ शिक्षिका राज्य स्तर पुरस्कार से सम्मानित किया गया I विभिन्न सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक आदि कार्यों से जुड़ी है I अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित, ऐसी है चैताली I बचपन में देखे स्वप्न को पूरा करने की ललक ने आज उसे उसके मुकाम पर पहुंचा दिया है I मात्र माता-पिता का ही नहीं बल्कि सास ससुर का भी नाम समाज में ऊँचा कर दिया I पति की अगवाही ने चैताली के जीवन की परिभाषा ही बदल दी I चैताली की बुलंदियों पर उसका पूरा गाँव गर्व करता है तथा गाँव की हर लड़की के लिए वह जीता जगता आदर्श बन गई है I
   यदि जीवन में कुछ पाने की चाह उत्कृष्ट हो तो मंजिल पाना मुश्किल नहीं है I
       
   

Tuesday, November 5, 2019

माँ से कहो कि आश्रम ...!




-    डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया

   मुकुंद आज आने में काफी देर हो गई।
हाँ ! बस थोड़ा-सा काम आ गया तो यही सोचा कंप्लीट करने पर ही निकलूं।
  नीरू किचन की ओर बढ़ते हुए, "मुकुंद जल्दी फ्रेश हो जाओ मैं खाना लगाती हूँ।"
तुम खाना लगाओ नीरू बस मैं यूँ गया और यूँ आया।
खाना परोसते हुए नीरू कुछ कहना चाह रही थी, मगर हिम्मत न जुटा पा
      खाने की मेज पर खाना खाते हुए मुकुंद कहता है, “नीरू आज तुम्हारा फिस का दिन कैसा रहा ?”
      अच्छा था। आज लंच में निहारिका मिली थी। तुम्हारे बारे में पूछ रही थी। आजकल लंदन में है। किसी फिस मीटिंग के सिलसिले में आई है। दो दिन बाद रिटर्न जा रही है।  
      अच्छा ! संडे लंच पर बुला लेती उसे‌। काफी समय से गेट-टुगेदर नहीं हुआ है। इसी बहाने मिलना हो जाता। रोहन भी आया है क्या ?
      हाँ रोहन भी आया है I काफी बिजी हैं वो। मुश्किल है आना। देखती हूँ। एक बार बात करती हूँ कल । दोनों को एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट मिला है I
अच्छा ! कैसा प्रोजेक्ट ?
      विभिन्न संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले अभियान ‘भारत में कुपोषित बाल एवं उनके निदान हेतु उठाए जाने वाले कदम’ का विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार करनी है I टेबल से सामान समेटते हुए नीरू हिम्मत कर मुकुंद से कहती है, "मुकुंद क्या तुमने माँ से बात की?"
      नीरू समय ही नहीं मिला। तुम खुद ही बताओ मैं माँ से कैसे बात करूं? कैसे आश्रम की बात...।
      मुकुंद इसमें गलत भी क्या है? मुझे लगता है तुम्हें बिना संकोच के माँ से बात करनी चाहिए। मैं उनके भले की ही बात कर रही हूँ

नीरू मुझे लगता है वो जैसे जीना चाहती है उन्हें जीने दो। इस उम्र में अब ये ...।

मुकुंद तुम समझना क्यों नहीं चाहते।

नीरू माँ ने जीवन में बहुत कुछ झेला है अब इस तरह का वाकया वह सुन न सकेगी।
मैं तुम्हारी माँ की कोई दुश्मन नहीं हूँ। मैं उनके भले की ही बात कर रही हूं।

नीरू मैं काफी क गया हूँ इस विषय में कल बात करेंगे।

अगली सुबह, "गुड मॉर्निंग मम्मी जी। कैसी हो ?"
      "गुड मॉर्निंग नीरू । मैं अच्छी हूँ I कल रात बहुत दिनों बाद बहुत अच्छी नींद आई I नीरू आज फिस नहीं है क्या?
      मम्मी जी फिस तो है मगर मैंने आज छुट्टी ली है। आज मैं पूरा दिन आपके साथ बिताना चाहती हूँ
      ये तो बहुत अच्छी बात है। तुम बैठो नीरू। मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूँ
नहीं मम्मी जी आज हम दोनों एक साथ नाश्ता करेंगे। फिर शॉपिंग के लिए जाएँगे। 
      नीता बहू का प्यार और अपनापन देख अपने भाग्य एवं पूर्व कर्मों के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रही थी। नीरू को ससुराल आए अभी एक साल भी नहीं हुआ है। लेकिन घर में पूरी तरह रच-बस गई है।

      नीता और नीरू दोनों तैयार हुए और निकल पड़े शॉपिंग के लिए। घर लौटने से पहले नीता ने ड्राईवर को गाड़ी आश्रम की ओर लेने के लिए कहा। आश्रम का नाम सुनते ही नीता के हाथ-पैर फूलने लगे। मन में भय जागृत होने लगा। कहीं नीरू ने अपनी चिपडी- चिपडी बातों में फंसा मुझे आश्रम में ....। मगर नीता धैर्य का बांध बांधे बैठी रही।

      ड्राईवर ने गाड़ी रोकी। नीरू और नीता गाड़ी से उतरे। सामने बड़ा-सा आश्रम था‌। नीता का मन अभी भी उथल-पुथल कर रहा था।
      माँ इस आश्रम से मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी है। जब मैं छोटी थी तब अक्सर दादी यहाँ लाया करती थी। आश्रम के बच्चों और महिलाओं से बात करना, उनके लिए कुछ करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। हमारे यहाँ आने से इन्हें एक नई जिंदगी, उम्मीद, विश्वास, अपनेपन का अहसास, कल्पना की नव उड़ान मिलती है । जब कभी मन बेचैन और उदास होता है, तो मैं यहीं चली आती हूँ । मन को बड़ा सुकून मिलता है। माँ देखो इन छोटे-छोटे बच्चों को कैसे उम्मीद की नजरें गड़ाए बैठे हैं ?
      मैं और मुकुंद दोनों फिस के कामों में इतना व्यस्त रहते हैं कि आपको समय ही नहीं दे पाते । और रही बात घर के काम-काज की तो उनके लिए नौकर काफी हैं आपके आशीर्वाद और भगवान की दुआ से मैं और मुकुंद दोनों इतना कमाते हैं कि आपको कभी भी किसी भी चीज़ की कमी न होने देंगे I आपको पलको पर बैठा कर रखना चाहते हैं हम I
  मुझे बहुत बुरा लगता है कि आपके अकेलेपन को दूर करने में हम दोनों असमर्थ हैं। आप अक्सर टीवी देख कर समय बिताने की कोशिश करती हैं। जब टीवी से मन ऊब जाता है तो सोसायटी की हमउम्र औरतों के साथ जी बहलाने का प्रयास करती हो।

 माँ अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ

"कहो न नीरू।" नीता कहती है I
      सोसायटी की सभी वृद्ध महिलाएँ इधर-उधर की बातें करती हैं या फिर सास-बहू वाले किस्सों के चटकारे मारती है। अच्छी खासी बहू बदनाम हो जाती है। आखिर उनकी बहुएँ भी किसी की बेटी हैं I आप मुझे अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती हैं I तो क्यों किसी की निंदा सुनने के पात्र बने I इश्वर ने हमे जो जीवन दिया है उसका सदुपयोग करें I
      माँ अगर आप अपना खाली समय यहाँ आ कर बिताएँगी तो इन्हें कोई अपना मिल जाएगा और आपका समय भी बीत जाएगा। आपके यहाँ आने से किसी को माँ का स्नेह, तो किसी को दादी का दुलार तो ...। आप तो पढ़ी-लिखी हैं I कंप्यूटर का भी अच्छी नॉलेज भी है I यहाँ के बच्चों को पढ़ने-लिखने मदद कर सकती हैं I कंप्यूटर की छोटी-छोटी जानकारी दे सकती हैं I
      जब कभी आपको आना होगा, तो ड्राईवर आपको छोड़ जाया करेगा। आपके मन को शांति-सुकून मिलेगा। माँ मेरी बातों का बुरा न मानना। मैंने मुकुंद से इस विषय में आपसे बात करने के लिए कहा था मगर वह संकोचवश कुछ कह न सका।
      नीरू कल रात मैंने तुम्हें मुकुंद से बात करते हुए सुना था। तुम्हारी आधी-अधूरी बात से मैं कांप गई थी कि मेरे बेटे-बहू मुझे आश्रम भेजना चाहते हैं।  मगर आज तुम्हारी बात सुन सीना गर्व से चौड़ा हो गया। मुझे बहू के रूप में साक्षात बेटी मिली है। जो मेरी खुद से भी ज्यादा चिंता और प्रेम करती है I जो बात मुझसे मेरा बेटा न कह सका, वही तुमने कितने सहज और सरल शब्दों में बयाँ कर दी
      थैंक्स नीरू। वैसे भी घर में पड़े – पड़े मैं ऊब जाती हूँ I मैंने कभी नहीं सोचा था कि उम्र के इस पड़ाव को इतनी सुकुंत के साथ जिया जा सकता है I अपने दुखों को भूल हम किसी कि ख़ुशी का हिस्सा बन सकते हैं यह विचार कभी हृदय में आया ही नहीं I हमारी एक मुस्कान किसी के जीवन में रंग भर सकती है, इस बात का आभास आज हुआ I नीरू तुमने जीवन के इस पड़ाव पर मुझे जीने की नई राह दिखाई। (दोनों आपस में गले मिलती हैं I)

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मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

    मनुष्यता                                               -  मैथिलीशरण गुप्त  विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो...