Wednesday, December 25, 2019

जागते रहो !





“चौकीदार चाचा नमस्ते, कैसे हो?”

“अरे, बिटिया कब आए ससुराल से ? (थोड़ा रुक कर) सब बढ़िया है तुम्हारे परिवार में ?”

“हां चाचा सब बढ़िया है I आप सुनाओ I चाची कैसी है ?” 

बिटिया तुम इतने सालों में आती हो, खैर खबर ही नहीं तुम्हें I

“क्यों चाचा ऐसा क्यों बोल रहे हो आप ? चाची तो ठीक है ना ?”

“तीन  सालों से तुम्हारी चाची ने खाट पकड़ ली हैI उसे उठाने-बैठाने के लिए भी एक इंसान चाहिए I मैं ठहरा बूढ़ा I अब इस शरीर में इतनी जान नहीं बची है, बस राम भरोसे ही गाड़ी खिंच रही हैI

“चाचा आज ही आई हूँI एक दिन चाची से मिलने आती हूँ I

आपका बेटा शंकर है ना I क्या वह चाची का ख्याल नहीं रखता I अब तो काफी बड़ा हो गया होगा I उसकी शादी हुई या नहीं I

“हाँ बिटिया बेटा भी है और बहू भी I
 मगर दोनों ही बेकारI दोनों हमारे किसी काम के नहींI बहू को तो हम दोनों बुड्ढा - बुड्ढी बिल्कुल नहीं सुहाते हैंI बेटे को भी बहू की बातें सुनाई देती हैI छोड़ो बेटा यह तो कर्मों का फल है जैसा बोया होगा, आज वैसा ही काट रहे हैंI

“चाचा मुझे आज भी याद है आप अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया करते थे I और आज भी...I आपके स्वभाव और अपनेपन में भी कोई कमी नहीं आई हैI

“चाचा जब हम इस शहर में रहने आए थे, तब आधी रात को पहली बार आपकी आवाज सुनकर मैं काँप गई थी I कई दिनों तक ज्वर से पीड़ित रही I रात होते ही भय मुझे जकड़ लेता कि अभी खूंखार, भयावह और विशालकाय वाला कोई आएगा I फिर जोर-जोर से बजती सीटियों के साथ “जागते रहो! जागते रहो!” की आवाज मेरे कानों को चीरती I मेरे हृदय तल पर एक कौंध-सी उभर गई थीI रह-रह कर मन में ही बात आती कि एक दिन यह व्यक्ति मुझे चुरा कर ले जाएगा I

अच्छा बिटिया! मुझे तो पता ही नहीं I बिटिया तुम्हारे हृदय से मेरी भयावहता का भय कैसे निकला?”

दोनों खिलखिला कर हँसते हैं I हँसते हुए बिटिया कहती है, “चाचा आज मुझे हँसी आ रही है मगर उन दिनों तो मेरी स्थिति बहुत भयावह थी।”

“बिटिया हँसो, मगर बता तो दो…...I
“हाँ-हाँ, चाचा बताती हूँ I मम्मी-पापा ने खूब समझाया, मगर मैं मानने के लिए तैयार ना थीI अरे! चाचा खड़े क्यों हो ? अंदर आ जाइए I क्या सारा किस्सा यहीं देहरी पर ही सुनोगे I
नहीं-नहीं बिटिया I मैं यही ठीक हूँ...I
“अरे चाचा कैसी जिद करते हैं आप I अंदर आ जाइए।”
“नहीं बिटियाI यहीं देहरी पर बैठ जाता हूँI अब तुम बताओ फिर क्या हुआ ?”
“हाँ चाचा बताती हूँ I मुझे आज भी याद है कि किस तरह से आपका परिचय हुआ था I मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती I

“क्यों बेटा ? ऐसा क्या हुआ था जो मेरे परिचय का दिन तुम्हारी स्मृति में आज भी समाया हुआ है।”

जी चाचा I रात की चौकीदारी के उपरांत अगली सुबह आप अपनी तनख्वाह लेने घर-घर दस्तक दे रहे थे I पापा घर पर ही थे I मैं और पापा छत पर रखे पौधों पर पानी छिड़क रहे थे I तभी आपने पड़ोस वाले ताऊजी के घर का कुंडा खटखटाया I काफी देर तक दरवाजा खटखटाने पर भी भीतर से कोई प्रतिक्रिया न दीखाई दी I आपने एक बार और प्रयास किया शायद कोई दरवाजा खोल दे I मगर..I आप निराश हो हमारे घर की ओर कदम बढ़ा ही रहे थे कि ताऊ जी के बड़े बेटे ने दरवाजा खोला I दरवाजा खुलते ही आपके चेहरे पर उम्मीद की एक लहर दौड़ पड़ी I आप मुस्कुराते हुए मुड़े ही थे कि तभी संजीव भैया भर्राते स्वर में आप पर बरस पडे क्यों भई अँधा–बहरा है क्या तू ? समझ नहीं आता क्या ? जब एक बार में दरवाजा नहीं खोला तो उसे पीटने की क्या जरूरत है I (संजीव चौकीदार से कहता है )
साब जी मैं तो.I
क्या मैं तो ?
साब जी मैं तो अपने पैसे लेने आया था।
अरे! कैसे पैसे ? क्या हमने तुमसे लिए हैं ? या तू देकर भूल गया हैI
नहीं साब जीI मैं तो रात की चौकीदारी के पैसे मांग रहा थाI
कैसी चौकीदारी I तुम सबके सब निठल्ले होI रात को मुहल्ले में जो चोरियाँ होती है उसमें तुम लोगों का ही हाथ होता है I चौकीदारी के नाम पर रात को चोरियाँ करवाते हो तुम I आज तो आ गया है फिर से दिखाई न देना यहाँ I चोर कहीं केI
साब जी गाली मत दो I हम पूरी इमानदारी से चौकीदारी करते हैं I
हाँ, हाँ, हमें पता है कि तुम कितनी इमानदारी से..I
साब जी मेरा मेहनताना दे दो I
मेरे घर से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगाI अपना रास्ता नापों...I
संजीव भैया ने न जाने क्या-क्या आरोप आप पर थोपने शुरू कर दिए I आप बड़ी शालीनता और धैर्य बांधे चुपचाप खड़े रहे I संजीव भैया के ऊँचे और कटु स्वर ने पूरे मुहल्ले को इकट्ठा कर लिया।
पापा ने छत के छज्जे से जो दृष्टि गली में फेरी तो देखा पूरा मुहल्ला एकत्रित हो चुका है I पापा मुझे साथ लेकर गली की ओर दौड़े I एक निर्दोष और इमानदार के साथ कैसी नाइंसाफी की जा रही है और सब तमाशा देख रहे हैं I क्या हुआ संजीव? पापा ने भैया से पूछा I
चाचा जी देखो कैसी धौंस जता रहा है, ये दो टके का चौकीदार I एक तरफ कामचोरी करते हैं और दूसरी तरफ पैसे मांग रहा है I
हाँ संजीव तुम ठीक कह रहे हो I
पापा की बात सुन संजीव की ख़ुशी का ठिकाना न रहा I मगर आप (चौकीदार) की निराशा स्पष्ट झलक रही थी I वहाँ उमड़ी भीड़ भी यही सोचने लगी की संजीव अब तक जो कह रहा था सब ठीक था I लोगों के चेहरे पर भी चमक सी आ गई I मैं चुपचाप सब सुन और देख रही थी संजीव एक बात बताओ हमारे मुहल्ले में अब तक कितनी चोरियाँ हुई है ?
एक भी नहीं चाचाजी I
कभी कोई हत्या या खून खराबे की बारदात हुई है क्या ?
नहीं चाचाजीI
आधी रात को किसी के घर में घुसने की कोई घटना ?
नहीं चाचा I
देर रात को लौटते समय तुम्हारे या परिवार के साथ कोई छेड़-छाड़, बदतमीजी, झडप, लूटपाट आदि ऐसा कुछ हुआ क्या?
नहीं चाचाजी I
ऐसी कोई रात जब तुम्हारा परिवार असामाजिक तत्वों की चिंता के कारण ठीक से सो न पाया हो ?
नहीं चाचाजी I ऐसा कभी नहीं हुआ।
अच्छा एक बात और बताओ I
हाँ, पूछिए न चाचा जी I
तुम्हें हर महीने ऑफिस से कितनी छुट्टियाँ मिलती है ?
यही कोई चार I मगर चाचा मैं आपकी बात समझा नहीं I और इन सब बातों से इस बहादुर का क्या मतलब ?
संजीव मतलब है I बहादुर पूरा साल एक भी दिन नागा किए बिना ही अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को पूरी शिद्दत से निभाता है I कभी किसी से ज्यादा पैसा नहीं मांगता I जो कोई अपनी ख़ुशी से जो दे देता है, बेचारा चुपचाप ले लेता है I तुमने इस निर्दोष पर बिना सोचे समझे न जाने कैसे-कैसे आरोप लगा दिए I अपने प्राणों की परवाह किए बिना पूरी रात निष्कपट भाव से हमारी रखवाली करता है I संजीव अभी तुमने ही कहा हमारे मुहल्ले में कभी भी ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसके लिए बहादुर को दोषी ठहराया जाए I इनको भी इज्जत प्यारी होती है I ये भी आत्मसम्मान की भावना रखते है I गरीब जरूर है, मगर सबसे पहले ये हमारी-तुम्हारी तरह ही इनसान है I पापा की बात सुन सभी के चेहरे फीके से पड़ गए I
चाचाजी, मुझे माफ़ कर दो I मैं बिना वजह ही बहादुर पर चढ़ गया I संजीव ने अपनी जेब से पैसे निकाले और बहादुर को थमाते हुए क्षमा मांगी I
“बिटिया तुम्हें तो सब याद है I मैं तो कब का भूल चुका था इस घटना को I
“चाचा यही तो खासियत है आपकी I
बस फिर क्या था पापा ने घर आकर मुझे बताया कि आप वही हैं जो रात भर जाग कर हमारी रक्षा करते है और जोर-जोर से सीटी बजाकर कहते हैं “जागते रहो ! (दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।)

Tuesday, December 24, 2019

बड़ा नहीं होना हमें...



       निदेश और युक्ता लगातार रोए जा रहे थे I घर भर में सभी की बेकली बढ़ती जा रही थीI सबकी समझ से परे था, आखिर बच्चों को हुआ क्या? जो इस कदर रोए जा रहे हैं I दादा-दादी ने भी यथासाध्य प्रयास कर लिया मगर सब व्यर्थ रहा I बच्चों की ऐसी दशा देख दोनों वृद्धों के प्राण सूख रहे थेI दादा जी, दादी से खीझते हुए कहते हैं कि सब तुम्हारे लाड़–प्यार का नतीजा है I दोनों बच्चे किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं I आखिर ऐसा कौन-सा तूफान आ गया, जो दोनों गंगा-यमुना बहाए जा रहे हैं I आज तो अति कर दी दोनों नेI दादी चुपचाप सुन रही थी I इस वक्त उनको चुप रहना ज्यादा उचित लगा I घर में पहले से ही बवाल मचा है इधर ये दादाजी भी ...I
वृंदा निदेश को गोद में बिठा, “निदु बेटा अब चुप भी हो जाओ I आखिर क्या हुआ है तुम्हे ? किसी ने डांटा है? युक्ता से झगड़ा है क्या? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम दोनों अच्छे से खेल रहे थेI अब ऐसी क्या बात हो गई जो तुम दोनों यूँ ...I” इधर टीना अपनी बेटी युक्ता से भी यही पूछ रही थी I वृंदा और टीना दोनों बच्चों को समझाने का प्रयास कर रही हैं, मगर उनकी भी सभी कोशिशें बेकार रही I बच्चों की इस हरकत से अब कवि और मोहित के सब्र का बांध टूट चुका था I दोनों ने बच्चों को फटकार लगते हुए कहा, “अगर अब तुम दोनों ने ये रोना–धोना बंद न किया तो हम से बुरा कोई न होगा I कवि ने तो निदु पर हाथ तक उठा दियाI कवि के इस व्यवहार को देख युक्ता दादी के पास हो ली I उनसे लिपट और जोर से रोना शुरू कर दिया I


   युक्ता यदि तुम दोनों ऐसे ही रोते रहोगे तो समस्या का कैसे पता चलेगा I निदेश भी दादी के पास आ गया I
   अब तुम दोनों रोना बंद करो I नहीं तो, “मैं तुम्हारे दादा जी के साथ गाँव चली जाउंगी I”
भरे और रूआसे स्वर में निदेश कहता है, “नहीं-नहीं, दादीजी आप ऐसा मत करना I अगर आप चली गई तो हमें कहनियाँ कौन सुनाएगा? हमारी गलतियों को कौन सुधारेगा? शाम को हमारे साथ कौन खेलेगा? रामायण और भगवद्गीता के अर्थ कौन सिखाएगा?”
“दादीजी मुझे स्कूल छोड़ने कौन जाएगा?” युक्ता कहती है I
“ठीक है मैं और तुम्हारे दादाजी कहीं नहीं जाएँगेI अब यह बताओ आखिर तुम दोनों रो क्यों रहे थे?” (दादीजी बच्चों से कहती है I )
दादी जी कल घर पर राजमिस्त्री आया था चाचाजी और पापा दोनों उन्हें समझा रहे थे कि घर के आँगन में कहाँ से कहाँ तक की दीवार चिनी जाएगी I (निदेश कहता है )
    हाँ, दादी निदू भैया ठीक कह रहे है मैंने भी मम्मी – पापा को बातें करते हुए कुछ ऐसा ही सुना ...I (युक्ता मासूमियत भरे स्वर बयाँ करती है )
    हाँ, तुम दोनों ने ठीक सुना I पर क्या फर्क पड़ता है I हम सब तो एक साथ ही हैं I जब चाहे युक्ता यहाँ चली आया करेगी और निदु का मन करेगा तब वह ...I घर और घर के लोग कहीं जा थोड़े ही रहे हैं I जो तुम दोनों ने सुबह से पूरा घर सर पर उठा लिया था I रही बात दीवार की तो दीवार चिन जाने से परिवार अलग तो नहीं होता I

   “दादी हमने माना कि हम दोनों बच्चे हैं, मगर इतने छोटे भी नहीं है कि घर में चल रहे मन – मोटाव को न भाँप सके I” निदेश दादी से कहता है I

   युक्ता आतुरता से, “दादीजी आप तो कह रही हो कि दीवार चिन जाने से परिवार अलग नहीं होता, पर पापा कह रहे थे कि दादी हमारे साथ रहेगी और दादा जी निदु के पास I इस दीवार ने तो हमारे दादा-दादी को ही बिखेरने का प्रपंच बना दिया और आप कहती है कि कोई अलग नहीं ...I”

नहीं शायद तुमने गलत सुना होगा I (दादीजी कहती है I)
(कवि प्रवेश करते हुए ) नहीं माँ बच्चे ठीक कह रहे हैं I मोहित ने आज सुबह ही ऐसा कहा है कि आप और पापा ...I

  निदु कहता है, “पापा मैं और युक्ता दोनों बड़े नहीं होना चाहते I हम सदा अपने बचपन में जीना चाहते हैं I”
क्यों निदेश ?
   पापा आप सभी ने मेरा और युक्ता का नाम बहुत सोच विचार कर रखा था I क्योंकि इस पूरे परिवार की वास्तविक सम्पत्ति हम दोनों हैं, न कि इस घर की चार दीवारी में बने कमरे, रसोई आदि I     
    ताऊ जी पूरे मुहल्ले के बच्चे आस-पास के बगीचों में खेलने जाया करते हैं I  मगर मैं और निदु भैया कितने खुशकिस्मत है कि दादाजी और दादीजी ने हम दोनों के लिए घर के आंगन में आलिशान बगीचा बना रखा है I  ताकि हम दोनों को खेलने के लिए कहीं भटकना न पड़े I आप सभी अपने-अपने कामों में इतने व्यस्त रहते हैं कि हमें समय ही नहीं दे पाते हो  जब देखो ऑफिस, मीटिंग आदि आपके लिए इम्पोर्टेड होती हैं मगर...I  मम्मी भी रसोई और घर के बाकी कामों में ही व्यस्त नजर आती हैं  उनके पास भी हमारे लिए कोई समय नहीं  दादाजी-दादीजी हम दोनों को कभी अकेलापन महसूस ही नहीं होने देते I आज तक जो भी क्वालिटी टाइम हमें दादा-दादी ने दिया है वह आप लोगों से कभी नहीं...I
      निदु अपने आंसू पोछते हुए, “पापा क्या आप इस बंधे – बँधाए परिवार को कुछ रुपयों और सम्पत्ति के लिए यूँही बिखेर दोगे I आपने सोचा भी नहीं कि दादाजी, दादीजी के बिना कैसे रहेंगे I अगर दादीजी एक पल के लिए भी दादाजी की आँखों से ओझल होती हैं तो वे कैसे बेचैन से हो उठते हैं I आप इस घर में नहीं उन दोनों के बीच के रिश्तों में, युक्ता और मेरे अर्थात बहन-भाई के रिश्तों के बीच दीवार चिन रहे हैं I पापा अगर मैं भी बड़ा होकर आपको और मम्मी को इसी तरह अलग करूँगा तो तब आप दोनों के दिल पर क्या बीतेगी I”
    मोहित कमरे की खिड़की से बच्चों की बातें सुन रहा था I
 बच्चों की बातें सुन सभी की आँखें भर आई I हृदय पसीज गया I इतनी छोटी सी उम्र में इतनी समझदारी I सभी निशब्द और स्तब्ध से हो गए I अब बच्चों की मासूमियत भरी बातों के आगे क्या कहें I बातें मासूमियत भरी जरुर थी लेकिन वास्तविकता से कहीं भी अछूती नहीं थी I
     आज पापा और चाचा जी जो कर रहे हैं अगर बड़े होकर ऐसी ही गलती हमें भी करनी है तो दादाजी – दादीजी हमें बड़ा नहीं होना.... I







* बेकली – बेचैनी, व्याकुलता
  निदेश –  कुबेर, धन, दाता
  युक्ता –  देवी लक्ष्मी आकर्षण के साथ, निपुण 

  यथासाध्य - शक्ति या सामर्थ्य के अनुसार या जहाँ तक हो सके

Saturday, December 21, 2019

christmas essay


क्रिसमस पर निबंध
 जिसप्रकार भारत में होली, दिवाली, रक्षाबंधन, ईद, गुडीपाडवा आदि त्योहार मनाए जाते हैं, उसी प्रकार क्रिसमस भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है I क्रिसमस ईसाईयों का सबसे बड़ा एवं ख़ुशी का त्योहार है I बच्चे–बड़ों सभी को क्रिसमस का बेसब्री से इंतजार रहता है I ईसाई समुदाय प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस बड़े ही धूमधाम, उत्साह और उल्लास से मनाते हैं I 25 दिसंबर को अर्धरात्रि 12 बजे जीजस क्राइस्ट अर्थात प्रभु ईसा मसीह का जन्म बेथलेहम शहर की एक गौशाला में हुआ था I जीजस को ईश्वर का इकलौता पुत्र माना जाता है I 

जीजस को यीशु, जीजस क्राइस्ट, प्रभु, ईसा आदि नामों से भी जाना जाता है I लोगों की धारणा है कि मानवजाति की रक्षा के लिए ही प्रभु ईसा को धरती पर भेजा गया था I प्रभु ईसा ने समाज को प्रेम, आपसी भाईचारे और मनुष्यता की शिक्षा दी I प्रभु का कहना था कि दीन-दुखियों की सेवा संसार का सबसे बड़ा धर्म है I उस समय के शासक को प्रभु द्वारा दिए जाने वाले संदेश कतई पसंद नहीं थे I प्रभु के विचारों और संदेशों के प्रति लोगों की बढ़ती भावनाओं के कारण उन्हें (जीजस को) सूली पर लटका दिया गया, मगर ऐसी मान्यता है कि प्रभु ईसा फिर से जी उठे थे I प्रभु किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच के भेदभाव को नहीं माना करते थे I इसी कारण लोगों में उनके प्रति आस्था और विश्वास की डोर और भी मजबूत हो गई I प्रभु ईसा के चमत्कार और उपदेशों की गाथाएँ बाइबिल में मौजूद है I यीशु ने कहा था कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है इसलिए किसी को पीड़ा न दो I प्रभु ने दूसरों के दुःख दर्द ग्रहण कर उन्हें सुखी बनाया I दुनिया के सभी पाप अपने ऊपर ले लिये और लोगों में पुण्य बाँट दिया I जिन्हें प्रभु के संदेश और विचार पसंद आए वे प्रभु के शिष्य बन गए और वहीँ दूसरी ओर जो लोग इनसे ईर्ष्या करते थे वे अज्ञानी और अहंकारी बन कर ही रह गए I




     क्रिसमस के पावन अवसर पर इसाई समुदाय लगभग पंद्रह – बीस दिन पहले से तैयारियों में जुट जाते हैं I घरों की साफ-सफाई करना, नए परिधान खरीदना, विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करना, मिठाइयाँ और केक बनाना, दोस्तों और परिवारजनों के लिए आकर्षक उपहार खरीदना, चर्च एवं घरों को भलीभांति सजाना आदि I क्रिसमस के एक–दो पहले घरों में लाइट, स्टार्स, क्रिसमस ट्री को सजाना तथा क्रिप बनाना आदि गतिविधियाँ आरम्भ हो जाती हैं I क्रिसमस के अवसर पर स्कूल, कॉलेज आदि में लगभग 8-10 दिनों का अवकाश रहता है I यदि ऑफिस और संस्थानों में इस दिन अवकाश नहीं होता, तो वहाँ भी क्रिसमस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है I आज कोई भी त्योहर किसी वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं रह गया है I वर्तमान पीढ़ी हर त्योहार पूरे जोश और हर्ष के साथ मनाना पसंद करती है I क्रिसमस में सीक्रेट सांता को उपहार देना और किसी के सीक्रेट सांता बन उपहार लेने का अपना ही मजा होता है I सीक्रेट सांता आज प्रचलन में है I क्रिस्चियन स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि में सीक्रेट सांता पहले से ही तय कर लिये जाते है और जिस दिन क्रिसमस कार्यक्रम होता है, उस दिन सभी सीक्रेट सांता एक-दूसरे से अपना उपहार बदलते हैं I
     इसाई धर्म के लोग क्रिसमस के दिन चर्च जाते हैं और हाथों में मोमबत्तियां लेकर चर्च में लोगों द्वारा विशेष प्रार्थनाएँ की जाती हैं I कई स्थानों पर इस दिन सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है I 
      इस जुलूस में प्रभु ईसा मसीह के जीवन पर आधारित झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती है  तथा प्रभु के भजन गाते हुए लोग प्रभु के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुए दिखाई देते हैं क्रिसमस से पूर्व रात्रि को चर्च में रात्रिकालीन सभाओं का भी आयोजन किया जाता है और ये सभाएँ रात्रि बारह बजे तक चलती हैं I जैसे ही बारह बजते हैं सभी लोग जीजस के जन्म की ख़ुशी के उपलक्ष्य अपने प्रियजनों को गले लगा अथवा हाथ मिलकर क्रिसमस की ढेरों बधाई देते हैं I इस दिन मध्यरात्रि को सांताक्लोज की वेशभूषा में व्यक्ति चॉकलेट और गिफ्ट बांटकर बच्चों की खुशियों को दोगुना बढ़ा देता है I बच्चे गिफ्ट और चॉकलेट पाकर आनंदित हो उठते हैं I 25 दिसंबर की सुबह भी चर्च में प्रभू की विशेष प्रार्थनाएँ की जाती है Iइसाई समुदाय के लोग प्रभु से दुआ करते हैं तथा अपनी सभी गलतियों के लिए माफ़ी मांगते हैंI
     इस दिन लोग रात्रि भोज का आनंद लेते हैं I इस भोजन को ईसा के भोज के नाम से भी पुकारा जाता है I सभी अपनी ख़ुशी को अपने अंदाज में मानाने का प्रयास करते हैं कोई नृत्य कर, तो कोई गा-बजाकर, तो कोई मजेदार क्रियाकलापों का आयोजन कर I सभी का अनूठा अंदाज होता है I क्रिसमस को मनाने के लिए उम्र मायने नहीं रखती बल्कि भावनाएँ जरुरी है I लोग एक-दूसरे के खेल घर जाकर आपस में बधाई देते हैं तथा गिफ्ट, केक आदि बांटकर खुशियाँ मनाते हैं I
    
व्यापार और बाजारों की चकाचौंध की दृष्टि से भी यह त्योहार उतना ही खास हैI छोटे–बड़े सभी व्यापारियों के लिए यह अत्यधिक मुनाफे का त्योहार है I बीस  से पच्चीस  दिनों की खरीद और बिक्री में व्यापारी मन चाहा लाभ प्राप्त कर लेते हैं I 
  इसतरह क्रिसमस का त्योहार सिर्फ भारत देश में ही अपितु पूरे विश्वभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है I
    
-    डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया






क्रिसमस

     अनेकता में एकता का संदेश देने वाले महान देश भारत में अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते है I पहनावे में अंतर, रहन-सहन में अंतर, त्योहारों की तैयारियों में भी अंतर आदि की विविधता की सुन्दरता ही मन को आकर्षित करती है I यदि त्योहारों की बात की जाए तो भारत ही क्या दूसरे देशों में भी त्योहारों का अत्यधिक महत्त्व है I त्योहारों का उत्साह ही कुछ अलग प्रकार का होता है I त्योहार अपने संग मस्ती, उमंग और एकता का संदेश लाते हैं I यूँ त्योहारों की ही बात करें तो विश्वभर में मनाए जाने वाला त्योहार ‘क्रिसमस’ की अपनी विशेषता है I
    
क्रिसमस ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है  यह त्योहार हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है  इतिहास का यह वाही दिन है जब लगभग 2000 वर्ष पूर्व ईसा मसही का जन्म हुआ था  इन्हें ईसाई धर्म का जन्मदाता माना जाता है I उन्होंने मानव समुदाय को प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया था I
     क्रिसमस का पर्व पूरी दुनिया में सभी धर्म के लोग बड़े उत्साह से मानते हैं I विश्व के जिन देशों में ईसाई धर्मानुयायी रहते हैं, वे इस त्योहार को बहुत उत्साह से मानते हैं I वे इस दिन चर्च जाते हैं तथा विशेष प्रार्थना करते हैं I 

वे अपने प्यारे यीशु को याद करते हैं जिन्हें सूली पर लटका दिया गया था परन्तु ऐसी मान्यता है कि यीशु फिर से जी उठे थे I यह सचमुच एक बड़ा चमत्कार था I इस चमत्कार के पीछे जनकल्याण की भावना थी I इस भावना के पीछे दुखी मानव को शांति और सुख पहुँचाना था I क्रिसमस की तैयारी ईसाई समाज के लोग 10-15 दिन पहले ही करने लगते हैं I घर की साफ-सफाई की जाती है, नए कपडे ख़रीदे जाते है और विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ बनाई  जाती है I चर्च को विशेष तौर से सजाया जाता है और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जोकि नए साल तक चलते हैं I ईसा मसीह के जन्म पर आधारित नाट्य का आयोजन किया जाता है I ‘कैरोल’ अर्थात जीजस के जन्म से जुड़े अनेक प्रकार के गाने गए जाते हैं I
     बिना केक के क्रिसमस तो अधुरा ही लगता है I क्रिसमस के उपलक्ष्य में जाता है I क्रिसमस में चार-चाँद लगाने का काम क्रिसमस ट्री करता है I जिसे बच्चे और बड़े सभी सजाना और देखना पसंद करते हैं I मान्यता अनुसर सांताक्लाज अपनी सवारी के संग ‘जिंगल बेल्स’ गाते हुए आते हैं और बच्चों के लिए उपहार छोड़ जाते हैं I यह रहस्य किसी को नहीं पता परन्तु यह मान्यता आज भी लोगों के मनों में विद्यमान है कि रात 12 बजे क्रिसमस शुरू हो जाता है I सभी अपने रिश्तेदारों को क्रिसमस के उपहर देते हैं और मैरी क्रिसमस कहते हैं I विद्यालयों में बच्चों को क्रिसमस के पर्व पर आठ-दस दिनों की छुट्टी भी मिलती है I
     इस तरह क्रिसमस का त्योहार लोगों को सबके साथ मिल-जुलकर रहने का संदेश देता है I ईसा मसीह कहते थे – ‘दीन  दुखियों की सेवा ही संसार का सबसे बड़ा धर्म है I इसलिए जितना हो सके, दूसरों की मदद करो I’ क्रिसमस के अवसर पर लोगों को ईसा मसीह के उपदेशों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए I

- मोनिका शर्मा







आओ मनाए क्रिसमस 


याद रखलो तारीख भईया
25 दिसंबर आ गया,
बच्चों को देने उपहार 
संतक्लोज है आ गया I

संतक्लोज है आ गया,
अपने संग अह खुशियाँ लाया,
केक बनाओ, घर सजाओ
'मेरी क्रिसमस' आ गया I 

'मेरी क्रिसमस' आ गया 
बहनों भाईयों हो जाओ तैयार 
जीजस क्राइस्ट को याद करके 
खुशियां बांटो देकर उपहार I

     जी हाँ, हम बात कर रहे हैं सभी बच्चों के मनपसंद त्योहार के विषय में और वह है 'क्रिसमस' का त्योहार I 
      सही मायने में भारत 'त्योहारों का देश कहलाता है I मकर संक्रांति से त्योहारों की लहर शुरू होती है और होली, नवरात्री, दिवाली आदि से होकर क्रिसमस पर थमती है I 
       क्रिसमस का त्योहार प्रभु ईसा के जन्मदिन के सम्मान में 25 दिसंबर को मनाया जाता है I ईसाईयों के लिए यह एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है I इस दिन लोग क्रिस्त्मस ट्री को एक नई दुल्हन की तरह सजाते हैं I 
       जिसप्रकार मकर संक्रांती में तिलगुड, जन्माष्टमीमें दही और मक्खन, दिवाली में करंजी और लड्डू, ईद में शीरखुरमा से मुँह मीठा कराया जाता है ठीक उसी प्रकार क्रिसमस में प्रत्येक घर में केक बनाकर उसे काटकर एवं एक-दूसरे का मुँह मीठा कर क्रिसमस की बधाई देते हैं I प्रभु यीशु सभी को एकता एवं भाईचारे का संदेश देते थे I किन्तु कुछ लोगों को इनका यह नेक कार्य पसंद न था I और क्रोध में आकर उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया परन्तु ईएसआई मान्यता है कि प्रभु मृत्यु की खाई से पुन: जी उठे थे I 
      प्रभु यीशु को ईश्वर का सबसे प्रिय पुत्र खा गया है और उनका स्मरण कर सब यह क्रिसमस का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाते हैं I अनेक लोग संतक्लोज बनकर बच्चों को उपहार देते हैं एवं चॉकलेट बांटते हैं I ऐसा कहा जाता है कि संतक्लोज सिर्फ अच्छे और सच्चे बच्चों को ही उपहार देते हैं और इस लालच में आकर बच्चे बुरा कार्य छोड़कर अच्छाई और सच्चाई का मार्ग चुनते हैं I  
  
     क्रिसमस के त्योहार पर सभी विद्यालयों, कॉलेज एवं दफ्तरों में 8-10 दिनों का अवकाश दिया जाता है I क्रिसमस की तैयारी एक हफ्दोते पूर्व ही आरम्भ हो जाती है और इस तैयारी में शहजादी सा सजा क्रिसमस ट्री सोने पर सुहागा लगता है I यदि क्रिसमस पर्व पर  विभिन्न जाति, भाषा और धर्म के लोग एकजुट होकर भाईचारे के साथ यह त्योहार मनाते है तो मैं यह चाहूंगी कि प्रत्येक दिन क्रिसमस के रूप में ही बनाया जाए ताकि हमारे देश में असमानता, जातिवाद एवं क्षेत्रवाद जैसी समस्याएँ कभी जन्म न ले पाएँगी I 

                    - द्रष्टि भानुशाली


क्रिसमस पर कविता 

त्यौहार की लंबी कतार में 
रहस्यमय और प्यारा सा वो कौन ?
क्या भाई पेहचाना नहीं ?
क्रिसमस के आलावा और कौन ? 

सांता आया सांता आया 
संग अपने उपहार लाया 
कहाँ से आते ,जाते कहाँ ये 
कोई  बतलाए जाए कैसे ?

प्रभु इशु का दिल 
सागर सा विशाल 
मानो धरती पर उतरे हो 
भाईचारा और प्यार .

चॉकलेट ,टॉफी बच्चों की पसंद   खुशियाँ बांटे और आनंद ही आनंद 
इस त्यौहार की शोभा बढ़ाता 
क्रिसमस का पेड़ पीछे कैसे हटता ?

आया देखो २५ दिसंबर
 झूम उठे धरती और अंबर !!

वैष्णवी पोकळे .


Article on Christmas

ईसाईयों के लिये क्रिसमस एक महत्वपूर्ण त्यौहार है हालाँकि ये संपूर्ण विश्व में दूसरे धर्मों के लोगो द्वारा भी मनाया जाता है . यह उत्सव साल के बड़े पर्वो में से एक है . क्रिसमस एक बहुत प्राचीन उत्सव है जिसे शीत ऋतू में मनाया जाता है .
मैंने  इस त्यौहार को 'रहस्यमय त्यौहार 'कहा ,क्योंकि इस उत्साही दिवस अर्थात क्रिसमस डे की कल्पना करते ही अपने मन में सांता घर बसा लेते है .न जाने सांता कैसे सभी को उपहार देकर उनका दिल जीत पाते है .न जाने कहाँ से आते है फिर कहाँ चले जाते है किसी को कोई खबर नहीं . इसीलिए तो यह रहस्यमय लगता है

प्रभु इशु की महानता मेरे इन लफ्जों में  समा पाए इतनी संक्षिप्त नहीं है . उन्होंने समाज को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी दुनिया के लोगो को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का  संदेश दिया था .इन्हे ईश्वर का इकलौता पुत्र यूँ ही नहीं मन जाता . पर इनकी अच्छाई लोग देख नहीं पाए . उस समय के शासको को जीसस का संदेश पसंद नहीं आया . अतः उन्होंने जीसस को सूली पर लटका कर उन्हें मौत के मुँह में  डाल दिया परंतु ऐसी मान्यता है कि जीसस फिर से जी उठे थे . खुद भगवान भी इस बात का  इनकार नहीं कर सकते की सच्चाई और अच्छाई का अंत असंभव है .
इस उत्साहपूर्ण दिवस पर चर्च में विशेष होती प्रार्थनाये होती है .इस दिन लोग क्रिसमस के पेड़ को सजाते है . अपने दोस्त,रिश्तेदार और पड़ोसियों के साथ मिलजुलकर  खुशियाँ मानते है और उपहार बांटते है . क्रिसमस के पेड़ का अलंकरण इस त्यौहार का सौंदर्य और भी बढ़ा देता है .
छोटे से बच्चे से लेकर बड़ो तक ,सबका दिल जितने वाला त्यौहार है क्रिसमस !....

वैष्णवी पोकळे

Saturday, December 14, 2019

हिंदी उपन्यासों में चित्रित धार्मिक अवधारणाएँ




आज सम्पूर्ण विश्व इक्कीसवीं सदी के अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग एवं भूमंडलीकरण के दौर में अपना जीवन यापन कर रहा है I दैनिक जीवन में उन यंत्रों की तकनीक को आत्मसात कर जीवन को सरलसहज एवं साफल्य बनाने के प्रयास में क्रियाशील है I नित नवीन होने वाले प्रयोगों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पूर्णरूपेण धारण कर लिया है I शारीरिक तौर पर रहन-सहनखान-पानबोली-भाषा आदि में बदलाव अवश्य देखने को मिलता है किन्तु मानसिकता में कोई बदलाव प्रतीत नहीं होता समाज में धर्मअंधविश्वासढकोसलोंरूढ़िवादी परंपराओं आदि के प्रति लोगों की मानसिकता में विशेष बदलाव दृष्टिगोचर नहीं होता I धार्मिक परंपराओं के प्रति लोगों का अडिग विश्वास स्पष्ट दिखाई देता है Iने अपनी कृतियों में विशेष स्थान तो दिया ही है साथ ही साथ इन आडम्बरों पर कड़ा विरोध करते हुए पाठकों के समक्ष उसका सशक्त निवारण भी प्रस्तुत किए हैं I 
भारतीय परिवारों में झाडफूंक एवं धार्मिक विचारों को स्पष्ट करते हुए 'कोई बात नहींउपन्यास में अलका सरावगी जी लिखती हैं, "दादी ऐसे समय में बत्ती जलाकर उसके उजाले को जरूर प्रणाम करती थी I जब तक आकाश में पूरी तरह अँधेरा न होतावह घर में झाड़ू-बुहारी नहीं करने देती थी I इसका संबंध धन की देवी लक्ष्मी  यानि जिंदगी के डॉ नंबर सुख से था I" घर की साफ़-सफाई और शाम के वक्त घर में जलने वाली दीया बत्ती का कैसा सहसंबंध I इस धारणा के पीछे दादी का क्या मंतव्य होगा जो अगली पीढ़ी का जीवन भी इन्हीं ढकियानुसी विचारों की साँठ-गाँठ से रच रही है I वहीँ दूसरी तरफ 'त्रिया हठउपन्यास में मधु कांकरिया जी धार्मिक विडम्बनाओं पर लिखती है, " मुसलमान लोग जब खैरात करते हैंआँखें बंद कर लेते हैं कि उन्हें याद न रहेकिसको क्या दान दिया I हमारे ख्याल में अहसान की अपनी टेक खुदा-पैगंबर भी जानते होंगे I"  समाज में स्वयं बनी कुरीतियों से मुँह फेर कर किए गए दान का कोई मोल है क्या ? जब खैरात आंटने में इतनी पीड़ा होती है तो ऐसे दान पुण्य और दिखावे की क्या आवश्यकता 
नमिता सिंह जी 'लेडिज क्लब' उपन्यास में धर्म एवं लखनऊ के जनाना पार्क से जुड़े वाकये को कुछ इस कदर लिखिती हैं, " आब महिलाएँ इकट्ठा होती हैं सिर्फ देवी जागरण के लिए, राम कथा, विष्णु कथा, कृष्ण कथा, सिर्फ कथाओं के लिए I कोई भी कथा हो, उस पर धर्म पताका लगी रहना काफी है I आप अपनी कथा सुना दीजिए और कह दीजिए यह धर्म सभा की कथा है I धर्म हमेशा से औरतों के ही आंचल में चाबी के गुच्छे की तरह लटका रहा है I" ईश्वर के स्मरण हेतु घर परिवार से दूर जाकर औरतों द्वारा चीख-चीखकर भजन कीर्तन करना क्या इचित है I क्या इस तरह के प्रदर्शन से ही देवी देवता प्रसन्न होते हैं I शोर-शराबा करने से किसी भी धर्म का देवता खुश नहीं होता और न ही ऐसे प्रदर्शनों से ईश्वर कोई-मनोकामना पूरी करता है I मनोकामना कड़ी म्हणत, सच्ची लग्न और ईमानदारी से पूरी होती है I फिर ऐसे आडम्बर की क्या आवश्यकता I
नासिरा शर्मा 'कुइयाँजान' उपन्यास में धार्मिक मान्यताओं का चित्रण करते हुए लिखती हैं, " अरे नासपीटे ! उन्हें मरे फफ्तों गुजर गए हैं और उनको अभी तक समझ रहा है ? कब्र की इबादत करना ठीक बात नहीं I जुमा जुमा जाकर फातिहा पढ़ आया कर I समझे गुदड़ी के लाल !" बदलू का मौलवी के प्रति विशेष स्नेह था इसलिए वह अक्सर उनकी कब्र पर सुकून के पल बिताना चाहता है मगर उस पर भी रोक थम लगे जाती है I बदलू के साथ किया जाने वाला व्यवहार उचित था या उसे समझाने का तरीका उचित था I   
मेहरून्निसा परवेज ने ‘अकेला पलाश’ उपन्यास में धर्म की संकुचित सीमाओं का खंडन करते हुए कहा है, “दुनिया में धर्म नहीं हैं, ऐसी बात नहीं है, वह है, पर घर कि दहलीज के अंदर तक I जब हम दहलीज के बाहर निकल आए है, बाहर का कम करने, तो यह जात-पात, ऊँच- नीच की भावना हमें त्याग देनी चाहिए I” भारतीय समाज में आस्था पर कम ध्यान दिया जाता है और धार्मिकता के ढोंग तथा प्रदर्शन पर अधिक I ममता कालिया जी पंडितों द्वारा दिए जाने वाले श्राप के विषय में लिखती हैं, “हम वशिष्ट ब्राह्मण हैं I हमें प्रसन्न नहीं किया तो यह यात्रा विफल हो जाएगी I अगली पूर्णमासी फिर आना पड़ेगा I बहुत पछताना पड़ेगा, बताइ डेट हैं तुमका I” संजीव के ‘जंगल जहाँ शुरू होता है’ उपन्यास में जातीयता के पाखंड और कोहराम को देखा जा सकता है I फेंकन बहू द्वारा मात्र बरतन छू ले ने से वे बरतन अछूते हो जाते हैं I पड़ाइन अपने जातीय दंभ का परिचय देते हुए, “अरे तेरा हिम्मत कैसे हुआ रे बाभन का बरतन छूने को ...?” मगर दूसरे दिन पड़ाइन फेंकन बहू से अपने देह कि मालिश करवाती है I फेंकन बहू का मानना था कि बरतन उसके छूने से अगर भ्रष्ट होते है तो पड़ाइन का पूरा देह भी अछूता हो जाए तो ....I धर्म के आड़ म अनेक घिनौने अपराधों को अनजाम दिया जाता है I मुट्ठीभर लोग अपने मंतव्यों को पूरा करने हेतु भोले-भाले लोगों को धर्म के नाम पर ठगते है और उन्हें सच्चाई से कोसो दूर रखते है I उपन्यासों में किए गए धार्मिक आडंबरों का वर्णन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों का चित्रण करता है तथा समाज की संकुचित मानसिकता का ब्यौरा भी देता है
समाज में धर्म की महानता और उसका अनुकरण न करने के प्रकोपों का गुणगान किया जाता है किन्तु धर्म की महानता के अंतर्गत समाज की इन बुराइयों के निराकरण के विषय में कोई सशक्त और प्रखर कदम उठाने के तथ्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता I 


मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

    मनुष्यता                                               -  मैथिलीशरण गुप्त  विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो...