निदेश और युक्ता लगातार रोए जा रहे थे I घर भर में सभी की बेकली बढ़ती जा रही थीI सबकी समझ से परे था, आखिर बच्चों को हुआ क्या? जो इस कदर रोए जा रहे हैं I दादा-दादी ने भी यथासाध्य प्रयास कर लिया मगर सब व्यर्थ रहा I बच्चों की ऐसी दशा देख दोनों वृद्धों के प्राण सूख रहे थेI दादा जी, दादी से खीझते हुए कहते हैं कि सब तुम्हारे लाड़–प्यार का नतीजा है I दोनों बच्चे किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं I आखिर ऐसा कौन-सा तूफान आ गया, जो दोनों गंगा-यमुना बहाए जा रहे हैं I आज तो अति कर दी दोनों नेI दादी चुपचाप सुन रही थी I इस वक्त उनको चुप रहना ज्यादा उचित लगा I घर में पहले से ही बवाल मचा है इधर ये दादाजी भी ...I
वृंदा निदेश को गोद
में बिठा, “निदु बेटा अब चुप भी हो जाओ I आखिर क्या हुआ है तुम्हे ? किसी ने डांटा
है? युक्ता से झगड़ा है क्या? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम दोनों अच्छे से खेल रहे थेI
अब ऐसी क्या बात हो गई जो तुम दोनों यूँ ...I” इधर टीना अपनी बेटी युक्ता से भी यही
पूछ रही थी I वृंदा और टीना दोनों बच्चों को समझाने का प्रयास कर रही हैं, मगर उनकी
भी सभी कोशिशें बेकार रही I बच्चों की इस हरकत से अब कवि और मोहित के सब्र का बांध
टूट चुका था I दोनों ने बच्चों को फटकार लगते हुए कहा, “अगर अब तुम दोनों ने ये
रोना–धोना बंद न किया तो हम से बुरा कोई न होगा I कवि ने तो निदु पर हाथ तक उठा
दियाI कवि के इस व्यवहार को देख युक्ता दादी के पास हो ली I उनसे लिपट और जोर से
रोना शुरू कर दिया I
युक्ता यदि तुम दोनों ऐसे ही रोते रहोगे तो
समस्या का कैसे पता चलेगा I निदेश भी दादी के पास आ गया I
अब तुम दोनों रोना बंद करो I नहीं तो, “मैं
तुम्हारे दादा जी के साथ गाँव चली जाउंगी I”
भरे और रूआसे स्वर
में निदेश कहता है, “नहीं-नहीं, दादीजी आप ऐसा मत करना I अगर आप चली गई तो हमें
कहनियाँ कौन सुनाएगा? हमारी गलतियों को कौन सुधारेगा? शाम को हमारे साथ कौन
खेलेगा? रामायण और भगवद्गीता के अर्थ कौन सिखाएगा?”
“दादीजी मुझे स्कूल
छोड़ने कौन जाएगा?” युक्ता कहती है I
“ठीक है मैं और
तुम्हारे दादाजी कहीं नहीं जाएँगेI अब यह बताओ आखिर तुम दोनों रो क्यों रहे थे?” (दादीजी
बच्चों से कहती है I )
दादी जी कल घर पर
राजमिस्त्री आया था चाचाजी और पापा दोनों उन्हें समझा रहे थे कि घर के आँगन में
कहाँ से कहाँ तक की दीवार चिनी जाएगी I (निदेश कहता है )
हाँ, दादी निदू भैया ठीक कह रहे है मैंने भी
मम्मी – पापा को बातें करते हुए कुछ ऐसा ही सुना ...I (युक्ता मासूमियत भरे स्वर
बयाँ करती है )
हाँ, तुम दोनों ने ठीक सुना I पर क्या फर्क
पड़ता है I हम सब तो एक साथ ही हैं I जब चाहे युक्ता यहाँ चली आया करेगी और निदु का
मन करेगा तब वह ...I घर और घर के लोग कहीं जा थोड़े ही रहे हैं I जो तुम दोनों ने
सुबह से पूरा घर सर पर उठा लिया था I रही बात दीवार की तो दीवार चिन जाने से
परिवार अलग तो नहीं होता I
“दादी हमने माना कि हम दोनों बच्चे हैं, मगर इतने
छोटे भी नहीं है कि घर में चल रहे मन – मोटाव को न भाँप सके I” निदेश दादी से कहता
है I
युक्ता आतुरता से, “दादीजी आप तो कह रही हो कि
दीवार चिन जाने से परिवार अलग नहीं होता, पर पापा कह रहे थे कि दादी हमारे साथ
रहेगी और दादा जी निदु के पास I इस दीवार ने तो हमारे दादा-दादी को ही बिखेरने का
प्रपंच बना दिया और आप कहती है कि कोई अलग नहीं ...I”
नहीं शायद तुमने गलत
सुना होगा I (दादीजी कहती है I)
(कवि प्रवेश करते
हुए ) नहीं माँ बच्चे ठीक कह रहे हैं I मोहित ने आज सुबह ही ऐसा कहा है कि आप और
पापा ...I
निदु कहता है, “पापा मैं और युक्ता दोनों बड़े
नहीं होना चाहते I हम सदा अपने बचपन में जीना चाहते हैं I”
क्यों निदेश ?
पापा आप सभी ने मेरा और युक्ता का नाम बहुत
सोच विचार कर रखा था I क्योंकि इस पूरे परिवार की वास्तविक सम्पत्ति हम दोनों हैं,
न कि इस घर की चार दीवारी में बने कमरे, रसोई आदि I
निदु अपने आंसू पोछते हुए, “पापा क्या आप इस
बंधे – बँधाए परिवार को कुछ रुपयों और सम्पत्ति के लिए यूँही बिखेर दोगे I आपने
सोचा भी नहीं कि दादाजी, दादीजी के बिना कैसे रहेंगे I अगर दादीजी एक पल के लिए भी
दादाजी की आँखों से ओझल होती हैं तो वे कैसे बेचैन से हो उठते हैं I आप इस घर में
नहीं उन दोनों के बीच के रिश्तों में, युक्ता और मेरे अर्थात बहन-भाई के रिश्तों
के बीच दीवार चिन रहे हैं I पापा अगर मैं भी बड़ा होकर आपको और मम्मी को इसी तरह
अलग करूँगा तो तब आप दोनों के दिल पर क्या बीतेगी I”
मोहित कमरे की खिड़की से बच्चों की बातें सुन
रहा था I
बच्चों की बातें सुन सभी की आँखें भर आई I हृदय
पसीज गया I इतनी छोटी सी उम्र में इतनी समझदारी I सभी निशब्द और स्तब्ध से हो गए I
अब बच्चों की मासूमियत भरी बातों के आगे क्या कहें I बातें मासूमियत भरी जरुर थी
लेकिन वास्तविकता से कहीं भी अछूती नहीं थी I
आज पापा और चाचा जी जो कर रहे हैं अगर बड़े
होकर ऐसी ही गलती हमें भी करनी है तो दादाजी – दादीजी हमें बड़ा नहीं होना.... I
* बेकली – बेचैनी,
व्याकुलता
निदेश –
कुबेर, धन, दाता
युक्ता –
देवी लक्ष्मी आकर्षण के साथ, निपुण
यथासाध्य - शक्ति या सामर्थ्य के
अनुसार या जहाँ तक हो सके
Wow😊👌
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