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भाषा
भाषा शब्द
संस्कृत की 'भाष्' धातु से बना हैI इसका तात्पर्य है 'बोलना' I भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है
I अर्थात् भाषा वह माध्यम है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, लिखकर अथवा संकेतों के
द्वारा अपने विचार दूसरों के समक्ष प्रकट करता है I
प्राचीन काल में
जब भाषा का अस्तित्व नहीं था तब मनुष्य संकेतों से अपनी बात दूसरों को समझाता था I
आहिस्ता- आहिस्ता मनुष्य ने अपने विचारों को प्रकट करने के लिए पत्थरों, चट्टानों,
पेड़ के तनों आदि पर कुछ संकेत या चिह्न बनाने शुरू कर दिए I इन चिह्नों की सहायता
से उसके लिए विचारों के आदान-प्रदान की क्रिया सरल हो गई I
मनुष्य निरंतर
परिवर्तन के कारण सभी बनता चला गया और उसे अपने विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट
करने हेतु एक साधन की जरूरत महसूस होने लगी I जरूरतों के आधार पर भाषा का विकास
हुआ I अनेक बदलावों के उपरांत तथा अनेक वर्षों के पश्चात् भाषा का एक सटीक एवं
निश्चित स्वरूप बना I वर्तमान समाज में भाषा का विशेष महत्त्व एवं स्थान है I भाषा
के बिना आज के समाज की संकल्पना क्र पाना असंभव है I
मनुष्य की तरह पशु-पक्षी भी अपने भावों-विचारों को विभिन्न आवाजों और संकेतों से प्रकट करते हैं I इन आवाजों और संकेतों से उनके सुख-दुःख के मनोभाव स्पष्ट होते हैं तथा अन्य विचार अव्यक्त रह जाते हैं I केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसकी भाषा से उसके सभी विचार स्पष्ट हो जाते हैं I
भाषा के प्रकार :
भाषा के दो प्रकार होते है :
(१) मौखिक भाषा
(२) लिखित भाषा
(१) मौखिक
भाषा – मनुष्य अपने जिन मनोभावों को बोलकर दूसरों के
समक्ष प्रकट करता है, उसे मौखिक भाषा कहते हैं
I
(२) लिखित
भाषा – मनुष्य अपने जिन मनोभावों-विचारों को बोलने के
स्थान
पर लिखकर प्रकट करता, उसे लिखित भाषा कहते हैं I
आमतौर पर भाषा का अन्य एक भेद
और भी है जिसे हम सांकेतिक भाषा के नाम से जानते हैं I सांकेतिक भाषा का भी अपना
महत्त्व है I सांकेतिक रूप कई रूपों में देखे जाते हैं :-
(1) आंगिक संकेत : जब मनुष्य अपने विचारों को
शारीर के अंगों अँगुली, मुख, आँख, नाक, हाथ, गर्दन, ओठ आदि द्वारा प्रकट करता है,
उसे आंगिक संकेत भाषा खा जाता है I इन्हीं आंगिक संकेतों के कारण ही भाषा में
शारीर के अंगों पर आधारित मुहावरों का प्रयोग दिखाई देता है I
(2) विभिन्न रंगों के संकेत : खाद्य
पदार्थों के पैकेट पर लगे गए लाल या हरे रंग के संकेत वास्तु के शाकाहारी या
मांसाहारी होने का इशारा करती है, ट्रैफिक सिग्नल में लगी विभिन्न रंग की बत्तियां
भी अलग-अलग सन्देश देती है, जैसे लाल बत्ती होने पर रूक जाना, हरी बत्ती होने पर
चलना, अधिकारीयों की गाड़ियों में लगी बत्ती आदि सांकेतिक भाषा का ही उदहारण है I
(3) ध्वनि संकेत : वाहनों की आवाजें, दमकल या
एम्बुलेंस की ध्वनि संकेत, विमान आदि के उड़ान में होने वाली ध्वनि, स्कूल की घंटी
की आवाजें, बर्तन गिरने की झंझनाहट की आवाज, भरी या हलके सामान के उठाने, रखने या
धकेलने आदि में जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे ध्वनि संकेत भाषा कहते है I
Ø
मौखिक, लिखित और सांकेतिक भाषा के आलावा भाषा के अन्य
रूप भी हैं :
(1) मातृभाषा : जो भाषा बच्चा अपनी माँ अथवा
परिवार से सीखता है, उसे भाषा कहते हैं I यदि माँ गुजरती भाषा बोलती है तो बच्चा
माँ से गुजरती सीखता है I गुजरती ही उसकी मातृभाषा होगी I अलग-अलग राज्यों या
देशों में रहने वाले लोगों की मातृभाषा भी भिन्न-भिन्न होती है I
(2) मानक भाषा : हर भाषा की कई बोलियाँ होती है किन्तु
मानक रूप एक ही होता है I जैसे – हिंदी की अनेक बोलियाँ हैं परन्तु उसका मानक रूप
खड़ीबोली है I प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियों आदि में हिंदी के इसी मानक
रूप को अपनाया गया है I
(3) राष्ट्रभाषा : देश के अधिकांश भाग में बोली
जाने वाली भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाता है I अधिकांश भारतीय हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं I आज भी सरकार द्वारा राजभाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है, मगर जनता ने इसे राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार कर लिया है।
(4) राजभाषा : देश के कार्यालयों में जिस भाषा
में काम-काज किया जाता है, उसे राजभाषा कहते हैं I भारत के कार्यालयों में हिंदी
और अंग्रेजी दोनों भाषाएँ राज-काज के तौर पर प्रयोग की जाती हैं Iभारत में अनेक
भाषाओँ के होने के पश्चात् भी आजाद भारत में 14 सितम्बर,1949 को संविधान में हिंदी
को राजभाषा घोषित किया गया I इसीलिए सम्पूर्ण भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर
को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है I
(5) अंतर्राष्ट्रीय भाषा : वह
भाषा जो कई देशों में बोली एवं समझी जाए, उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा कहते हैं I
अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है I
* प्रत्येक देश की अपनी राष्ट्रभाषा होती है जैसे :-
चीन-चीनी, ब्रिटेन-अंग्रेजी,
जापान-जापानी, स्पेन-स्पेनिश,
जर्मनी-जर्मन आदि I
Ø बोली : बोली भाषा का वह रूप है जो
निश्चित तौर पर किसी एक क्षेत्र अथवा स्थान विशेष में ही बोली जाती है I बोली
मुख्य रूप से बोल-चाल की भाषा होती है I इसका रूप थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदलता है I
इसका लिखित रूप में कम प्रयोग होता है I जैसे : भोजपुरी, अवधी, हरयाणवी आदि I
Ø उपभाषा : एक से अधिक बोलियाँ मिलकर उपभाषा का रूप
धारण करती है I उपभाषा का क्षेत्र बोली से अधिक विस्तृत होता है I
v ‘बोली’ में साहित्यिक
कृतियाँ नहीं होती परन्तु ‘उपभाषा’
में साहित्य सृजन किया जाता है I
v बोली बोलने वाला अपने क्षेत्र के लोगों से तो बोली में
बाते करते है, किन्तु स्थान विशेष से बाहर
के लोगों से संवाद हेतु भाषा का ही प्रयोग करते हैं I
Ø हिंदी की बोलियाँ :
1. पूर्वी हिंदी – अवधी, बघेली, छतीसगढ़ी
2. पश्चिमी हिंदी – बृजभाषा, खड़ीबोली, हरयाणवी, बुन्देली,
कन्नौजी
3. राजस्थानी – मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी
4. पहाड़ी – कुमाऊँनी, गढ़वाली
5. बिहारी – मगही, नागपुरी, मालवी, भोजपुरी, खोरठा, मैथिली
- डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया
बेहद खूबसूरत
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