Monday, December 9, 2019

रोजमर्रा की जिंदगी की वास्तविकता को दर्शाती कहानी 'सौम्या'




सौम्या बच्चों और पति के साथ स्टेशन पर खड़ी ट्रेन के आने का इतजार कर रही थी I दोनों बच्चे प्लेटफार्म पर लगी कुर्सी पर बैठ बड़े मज़े से कोमिक बुक पढ़ रहे थे I सौम्या का पति सलिल बच्चों के लिए कुछ खाने-पीने का सामान लेने सामने के स्टाल पर चला गया I सौम्या की एक नज़र बच्चों पर तो दूसरी नज़र सामन पर I इतने में सलिल बुदबुदाता हुआ सौम्या के पास पहुंचा I सलिल को देख सौम्या से पूछे बिना न रहा गया, “क्या हुआ ? जो इतना बड़बड़ा रहे हो ?” कुछ नहीं सौम्या, “ये लोग कभी नहीं सुधरेंगे I यात्रियों की मजबूरियों का फायदा उठाते है बस I 
दस की चीज बीस में न बेचे तब तक इन लोगों को सुकून नहीं मिलता I साफ़-साफ़ दाम लिखे होने पर भी लोगों की जल्दबाजी और विवशता की आड़ में मन चाही कीमत वसूलतें हैं ये लोग I सरकार को इन लोगों का लाइसेंस जब्त कर लेना चाहिए धोखा-धड़ी के जुल्म में....I ”
तुम भी न I जब ऐसी बात थी तो नहीं लाते I चाचाजी ने बच्चों के लिए इतना कुछ बाँध दिया है कि हम चारों मिलकर भी पूरा न खा सकेंगे I
सौम्या तुम ठीक कह रही हो मगर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं I स्टाल वाले को जब मैंने पैकेट पर लिखे दाम दिखाए तो कहने लगा, “साहब जी गलती से .....I” देश की उन्नति में सबसे बड़ी रूकावट ऐसे ही लोग होते हैI एक तरफ खुद ही भ्रष्टाचारी करते हैं और दूसरी तरफ देश के विकास की बात करते हैं I न जाने कब ऐसे लोगों की मानसिकता बदलेगी I
सलिल छोड़ो I सरकार कितने भी सख्त कदम क्यों न उठाए, मगर भ्रष्टाचारी का बीज एक स्थान छोड़ दूसरी जगह अंकुरित हो ही जाता है I स्वार्थी स्वाभाव के कारण लोगों के मन मस्तिष्क से भ्रष्टाचारी पूर्णतय निकाल पाना असम्भव है I
सलिल अब इन बातों को छोड़ों I चाचाजी के घर पर ये 10 दिन कितनी जल्दी बीत गए पाता ही न चला I बच्चे भी बहुत खुश थे I अपने गाँव आ कर I अपनी मिट्टी से मिलकर I इन दोनों ने तो कभी सोचा भी न होगा गाँव का सीधा–सरल जीवन भी इतना सुखद औए मनोहारी हो सकता है I चाचीजी-चाचाजी और आदित्य के साथ दोनों कितना घुलमिल गए थे I घर से निकलते समय सभी की आँखें द्रवित हो गई थी, लग रहा था ससुराल से नहीं बल्कि मायके से विदा हो रही हूँ I यदि आदित्य की परीक्षा न होती तो वो भी स्टेशन हमारे साथ .....I
“हाँ ! जनता हूँ I” सलिल ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा I 
सौम्या मेरा बचपन गाँव की इन गलियों, मिट्टी, खेत-खलियानों और चाचाजी के परिवार के साथ ही बीता है I इस खुशबू और अपनेपन को मैं कभी नहीं भूल सकता I माँ-बाबा का असमय चले जाना मेरे लिए बेहद दुखद घटना थी I मगर चाचाजी और चाचीजी ने कभी महसूस ही न होने दिया कि माँ-बाबा अब दुनिया में नहीं रहे I मुझे पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया.... I दोनों के स्नेह, संघर्ष और ममतामयी भावना को मैं चाह कर भी दिलों –दिमाग से निकाल नहीं सकता I मेरे लिए दोनों का दर्जा ईश्वर से भी बढकर है I सौम्या से बात करते-करते सलिल की आँखें कुछ नम हो उठी I हम दोनों अपनी गृहस्थी और नौकरी में इतने व्यस्त है कि गाँव आने के बारे में कभी सोच ही नहीं पाते I थैंक्स !! सौम्या सिर्फ तुम्हारी वजह से... मैं अपने परिवार और गाँव से फिर मिल पाया I हमारे बच्चों के लिए भी सब कुछ नया ही था I गाँव आनेवाले ट्रिप का सरप्राइज मुझे हमेशा याद रहेगा I सौम्या थैंक्यू सो मच I
चलो अब बस भी करों, कितनी बार थैंक्स कहेंगे आप ? तुम भलीभांति जानते हो कि तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है I सुनो अपनी ट्रेन की अनाउंसमेंट हो रही है I अब थोड़ी ही देर में अपनी ट्रेन प्लेटफार्म पर आने वाली है I बच्चों को भी यहीं बुला लो I
ट्रेन आती है I वे सभी ट्रेन में ....I सौम्या गाँव के दस दिन बहुत ही मज़े में बीत गए लेकिन ये ६-७ घंटे की जर्नी करनी बड़ी ही दुःख-दाई रहेगी I ऊपर से साथ में बच्चे भी है I सलिल तुम चिंता क्यों कर रहे हो ? अपना तो रिजर्वेशन है I हम अपनी सीट पर बच्चों के साथ बैठेंगे I क्या दिक्कत है ?
सौम्या तुम्हें कुछ नहीं पाता इसलिए ऐसा कह रही हो I अगला स्टेशन आने दो सब पता चल जाएगा I
मुश्किल से दो चार स्टेशन ही निकले थे I सौम्या समझ गई सलिल ने ऐसा क्यों कहा था I ट्रेन हर स्टेशन पर होल्ट ले रही थी और उससे भी बड़ी समस्या यह थी कि हर स्टेशन से चढ़ने वाले लोकल लोग... I रिजर्वेशन होने के बावजूद भी उन चारों को अपनी सीट पर ठीक से बैठने की जगह न मिल पा रही थी I कुछ लोग तो जनर्ल डिब्बे की टिकट लिए ही रिजर्वेशन कोच में विराजमान थे I मगर ऐसे निर्लज और ढीठ की चेहरे पर जरा भी भय या शिकंज के भाव न थे I सौम्या की सीट पर बैठे लोग बड़ी-बड़ी डींग की हाँक रहे थे I 
टी.सी. के न आने तक सलिल और सौम्या यही सोचते रहे कि सामने वाली सीट तीन में से दो उनकी होगी I इसलिए बड़ी बेफक्री से बैठे हैं I
तभी कोई आठ-दस साल का लड़का हाथ में दो पत्थरों की ठीकरी लिए चढ़ा और सलिल की सीट के पास खड़ा हो बड़े ही सुर में गाता है , “ ये जवानी है दीवानी ...हट मेरी रानी..रुक जाओ रानी ......गिल्ली गिल्ली अक्खा ...... I” सलिल उससे कुछ कहता उससे पहले ही वह टी. सी. को सामने से आता देख अपने गिरी टोपी को संभालते हुए तितर बितर हो गया I 
टी.सी. महोदय आए I सबसे टिकट दिखाने को कहा I सौम्या ने मोबाइल में अपनी टिकट दिखा दी I सलिल के ठीक सामने बैठे व्यक्ति ने कांग्रेस की निशानी ‘हाथ’ को एक बार ऊपर उठाया और पूर्ववत हाथ नीचे I इस प्रतिक्रिया को देख सौम्या मन ही मन मुस्काई फिर ...I उस व्यक्ति की इस प्रतिक्रिया को देख ऐसा आभास हुआ जैसे वो रेलवे कर्मचारी ही हो I टी.सी. ने भी कड़क आवाज में, “ हाथ नहीं टिकट ?” उस व्यक्ति ने भौं चढ़ाते हुए मुंडी ऊपर उठाई I टी.सी. को स्थिति को भाँपते देर न लगी I इसलिए इन से आराम से निपटने के लिए छोड़, साइड लोअर बर्थ पर बैठे परिवार से टिकट माँगी I पानी लो पानी... I ठंडा पानी... I अंकल ठंडा पानी चाहिए क्या? पूरी टरेन में कोई दुसरा नई है पानी वाला I लेलो न I एकदम चिलड बाटर है I इस भयंकर गर्मी में ऐसा पानी नही मिलेगा I अल्ले अंकल जी ले लो I आंटी आप लेंगी थंडा पानी I पानी लो पानी.....I साइड लोअर बर्थ पर मियाँ-बीबी सहित छह बच्चे भी थे I बच्चों की संख्या देख सौम्या को ही नहीं आसपास बैठे लोगों को भी आश्चर्य हुआ कि आज की मंहगाई, बच्चों की शिक्षा आदि के खर्चों को देखते हुए इतने...I परिवार बड़ा हुआ तो क्या ? मगर उस व्यक्ति के पास सभी की टिकटे थीं I बस समस्या यह थी कि आठ में से सिर्फ दो बर्थ कन्फर्म थी, बाकी वेटिंग पर I उन्हीं के ऊपर वाली बर्थ पर दो लड़कियाँ बैठी थी I उनके पहनावे, चाल ढाल, बातों के हाव-भाव आदि से ऐसा लग रहा था कि हाल ही में कॉलेज में दाखिला लिया है और ट्रेन में बैठाने भी माता-पिता आए थे I दोनों में से किसी एक लड़की के साथ एक बुजुर्ग भी था, जोकि यही कोई 80-85 के रहे होंगे I भक सफ़ेद धोती-कुर्ता, चेहरे पर उभरी झुर्रियाँ साफ-साफ उम्र बयाँ कर रही थी, सीधे हाथ की कलाई पर दम्पत्ति का गुदा नाम, सिर पर राजस्थानी स्टाइल में सफ़ेद बड़ी-सी पगड़ी और गर्दन डुगडुगी-सी नाच रही थी I उन्होंने उस बुजुर्ग को सलिल के सामने वाली बर्थ पर बिठा दिया और निश्चिंत हो साइड वाली अपर बर्थ पर बैठ गईं I टी.सी. ने लड़कियों की ओर टिकट माँगते हुए नज़रे तरेरी I दोनों बुरी तरह भयभीत हो उठी I दोनों यही सोच कर इस बोगी में चढ़ी थी कि मई-जून की छुट्टियों के दौरान इस रूट की सभी ट्रेन्स खचाखच भरी रहती है, तो टी.सी. टिकट जाँचने नहीं आएगा I 
टिकट का नाम सुनते ही दोनों सकपका गईं कि अब क्या करें ? काफी देर बाद घबराते हुए और संकोचवश चालू डिब्बे की टिकट निकाली I टी.सी. के लिए एक और बकरा मिल गया था हलाल करने के लिए I पहले तो थोड़ी ऊँची आवाज में, “बिना रिजर्वेशन तुम इस कोच में यात्रा नहीं कर सकती I जुर्माना भरना पड़ेगा I
“जुर्माना ...जु..र..माना ...I” लड़कियाँ चौकते हुए बोलीं I सर..र.. हमारे पास पैसे नहीं है I अगले स्टेशन पर उतरना है I सॉरी सर I टी.सी. बोला, “अपना सामान उठाओ और जनर्ल डिब्बे में जाओ I लडकियों ने बात तो सुनी, मगर आई - गई कर दी I टी.सी. भी कहाँ अपना माथा-फोड़ी करता इन लडकियों के साथ I उसे तो अभी उस आदमी से भी निपटना था जिसने चुनाव चिह्न ‘हाथ’ दिखाया था I तभी समोसा बेचने वाला आता है और उसी व्यक्ति से पूछता है, “अंकल जी समोसा, गरमा गर्म समोसा खाएँगे ? एकदम गर्म है I दे दूँ क्या ? जादा नहीं मात्र १० रू पलेट है I जलदी बोलो, देदूं क्या ? पहले कभी न खाए होंगे ऐसे झकास देसी समोसे I” उसकी बात सुन अंकल जी बोले, “ आया अंकल जी वाला चल आगे बढ़ I दिमाग न खाइयों I वर्नानननन .....I” वर्ना क्या ? पैसे बैसे तो है न जेब में I तुम का खाओगे समोसा.....I 

समोसा बेचने वाला लड़का जैसे ही आगे बढ़ा, टी.सी. ने भी इन्हीं की तरफ अपना रूख मोड़ लिया I भाई साहब टिकट दिखाओं I टिकट नहीं है I तो ऐसा है अब आपका चालान कटेगा I कहाँ से बैठे थे ? आप दोनों ? और कहाँ तक जाएँगे ? सौम्या आसपास चल रहे सीन को देख रही है और लोगों की तुच्छ मानसिकता पर विचार कर रही है कि आखिर देश और समाज का विकास कैसे हो ? किसी एक के इमानदार बन जाने से देश विकास नहीं कर सकता और न कोई बड़ा परिवर्तन किया जा सकता I हाँ ! तो भाई साहब टिकट का क्या मसला है ? अगर है तो दिखाओ वर्ना ....I टी.सी. के ऐसे शब्द सुन वह व्यक्ति उठा और चुपचाप अपनी बंध मुट्ठी से उसके हाथ में कुछ थमा दिया I ये लेन-देन इतनी तीव्रता से हुआ किसी को कुछ समझा ही नहीं I चाय वाला चाय ...I गरमा गर्म चाय I लेगा कोई चाय ? गरमा गर्म चाय I कुल्हड़ वाली चाय I  
“अरे साइड कर अपनी कुल्हड़ वाली चाय I सुबह से बोनी तक नहीं हुई कबी टी.सी. सामने से आ जाता है तो कबी चाय – पकौड़े वाले ....I चल साइड हो I नहीं दूँगा अबी ...I” गाने वाला लड़का कहता है I
बाबूजी दो दिन से कुछ नहीं खाया है I (पेट पर हाथ फेरते हुए I) मैडम कुछ पैसे दे दो I अंकल आप ही दे दो I समझो गरीब की दशा I मुफ्त नहीं मांग रहा हूँ अबी गाना सुनाया था न I ये जवानी है .......I
अच्छा मैं फिर से सुना देता हूँ I आपने सुना नहीं होगा I कौन सा सुनाऊ I बोलो बही सुनाऊंगा I
( सलिल कुछ ऊँची आवाज में ) आगे बढ़ो I दिमाग न खाओ I दिखाई न देना फिर I
साब गुस्सा क्यों होते हो ? चला जाउँगा I एक गाना सुनाता हूँ I आप गाना सुन कर कुछ भी दे देना I दो दिन से कुछ नहीं खाया है I
तुम्हें सुने नहीं देता I (सलिल कहता है I )
सलिल गुस्सा मत करो I मेरे पास कुछ खाना पड़ा है उसे दे देंगे I शायद सच में उसने कुछ न खाया हो I सुन लो उसका गाना I
पापा–पापा गाने दो न उसे I
साब गाऊं क्या ? बोलो न ?
   “ तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्या निभाओगे .....I” वह गाता है I
सौम्य थैले में से थोड़ा-सा खाना निकाल कर उसे देती है I
   खाना पते ही उसकी आँखों में एक रोशनी सी दौड़ आती है I वह खाना पाते ही तुरंत .....I
दूसरी तरफ टिकट का मसला भी निपट चूका था लेकिन सौम्या जैसे सभ्य और जिम्मेदार नागरिक के लिए तो और भी मुश्किल था उस प्रक्रिया को समझना I तभी सलिल ने बुदबुदाते हुए सौम्या से कहा, “ लो हो गया सेटलमेंट I” उसने भी बड़े आश्चर्य से पूछा, “कैसा सेटलमेंट ?” वही जो अभी हुआ टी.सी. और उस आदमी के बीच I देखा नहीं तुमने I इधर टी.सी. की जेब गर्म हुई और उधर उसने अपना रस्ता नाप लिया I वे लड़कियाँ और बुजुर्ग चालू टिकट पर सफर कर रहे है पैसे बचाने के लिए, मगर रिजर्वेशन बोगी में, सामने बैठा व्यक्ति टी.सी. की जेब गर्म कर बिना टिकट रिजर्वेशन बोगी में मजे से सफर कर रहा है I टी.सी. के इस व्यव्हार को देख सौम्य और सलिल को मानसिक वेदना हुई I इन खाली सीटों को उस व्यक्ति को देनी चाहिए थी जो अपने छह बच्चों के साथ सफर कर रहा था, इन खाली सीटों को उसकी वेटिंग टिकट पर मुहैया करना उसका कर्तव्य था I मगर टी.सी. में अपने कर्तव्य को निभाए बिना भ्रष्ट लोगों का साथ दिया तथा अपने कर्तव्य और सरकार द्वारा दी गई जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर देश की कानून व्यवस्था और न्याय परिसर का भी उल्लंघन किया I टी.सी. ने न चालान काटा और न ही उन्हें अगले स्टेशन पर उतारा I
सौम्या और सलिल पूरे सफर में यही सोचते रहे कि कैसा सिस्टम है हमारे देश का ? एक ओर विकास, ईमानदारी, प्रगति, बदलाव आदि की बातें की जाती हैं, तो वहीँ दूसरी तरफ अपने कर्तव्यों से विमुख हो कालाबाजारी को बढ़ावा दिया जा रहा है I कब देश का हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी को समझेगा ? भ्रष्ट तरीकों से चार पैसे बचाने वाली फितरत कब बदलेगा ? आखिर कब जागरूक नागरिक होने का प्रमाण देगा ? ऐसे ही अनगिनत प्रश्नों की उधेड़बुन की कशमकश में लगे दोनों ने अपना सफर पूरा किया I


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