Friday, March 27, 2020

मेरी बेटी आठ साल की हो गई है...



मेरी बेटी आठ साल की हो गई है...
-           डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया

आज मेरी दिति 
आठ साल की हो गई है,
थोड़ी नहीं बहुत ज्यादा ही 
समझदार हो गई है,
बात बात पर करती है मुझसे 
खट्टी मीठी नोकझोंक,
बात जो कोई हमारी पसंद ना आए उसे
तो फिर तिरछे से नैनों से वार करती है,

पापा-चाचा की बसती है जान इसमें 
डांट लगा पापा की 
हम सभी का भी हिसाब किताब पूरा कर लेती है,

फरमाइशों का लगा देती है अंबर
हमारे लिए तो ख्वाहिशों की फुलझड़ी हो गई है,
आज मेरी बेटी आठ साल की हो गई है

बहन भाई की भी क्या खूब पटती है,
इशारो-इशारो में एक दूसरे की सारी बात बनती है
लाड दुलार इतना बरसाती है उस पर
मां के प्यार से कम न कभी नजर आती है

कभी मीठा सा,
तो कभी तीखा सा
लगे दादी बुआ का प्यार
मगर फिर भी खूब उनपर लाड लड़ाती है,

आज मेरी दिति आठ साल की हो गई है।
थोड़ी नहीं कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई है।

Thursday, March 26, 2020

korona ko jald bhagana hai

कोरोना को जल्द भगाना है 
( कविता )

आया है भयंकर दौर 
फैली है यह बीमारी 
जकड़ में जिसके हैं पूरा विश्व कहलाए वो 'महामारी' 

'कोरोना' है यह बीमारी 
जिसने फैलाया है अपना जहर, चिंतित है पूरा विश्व 
फैला है चारों ओर कहर। 

पीड़ित है मानव जाति 
संकट बहुत बड़ा आया है 
बने हैं गुलाम आज फिर 
रोगी मन और काया है ।

लड़ाई स्वतंत्रता की लड़ी थी जो स्वतंत्रता हुई थी हासिल सही एकजुट शक्ति का परिणाम था वह 
अब भी डरकर होगा नहीं कुछ।

अपनी जान की बाजी लगा 
लड़ रहे पुलिस, डॉक्टर और नर्स सभी का समर्थन और संयम चाहिए विश्व में 
आएगा बदलाव यदि करें अभी ।

आओ सलामी दे उनको 
जो हमारी सलामती के लिए कष्ट सहें
गुलामी नहीं, रक्षा की योजना है यह 
कृपया कर अपने घर में ही रहे।

अस्वच्छता से नाता तोड़ो स्वच्छता के द्वार खोलो 
' हाय ' ' हैलो ' नहीं,  
हाथ जोड़ो और नम्र निवेदन से नमस्ते बोलो। 

जूझ रही मानवता आज 
चलो स्वतंत्र कल बनाएं लक्ष्मणरेखा ना लांग कर 
' मोदी मंत्र ' अपनाए ।

विश्व को फिर से जगाना है कोरोना को जल्द से जल्द भगाना है 
गाता हर नागरिक यही गाना है 
' कोरोना ' को जल्द भगाना है।

मोनिका पवन शर्मा 
नवी मुंबई।

Saturday, March 21, 2020

poem on world poetry day अधूरी जिंदगी

विश्व कविता दिवस के उपलक्ष्य में मेरी नई कविता :


 "अधूरी जिंदगी"

अधूरे किस्से, 
अधूरी बातें, 
अधूरे स्वप्न,
अधूरी रह जाती हैं,
हमारी तुम्हारी कहानी,

आधे अधूरे जीवन के
हर उस अधूरेपन को
आओ मिलकर फिर से 
पूरा करने का प्रयास करें 

लोक से हट 
कुछ नव विचार कर लें 
अधूरे किस्सों को,
आओ आज पूरा कर लें 

 जिंदगी की अधूरी 
बातों के सिलसिले को 
आज फिर हमारी तुम्हारी
बातों से लंबा कर लें 

आधे अधूरे से 
हमारे तुम्हारे सपनों को 
आओगे गहरी नींद लें 
पूरा कर लें 

आओ इस अधूरी जिंदगी की 
कहानी को विस्तार दें 
पूरा कर लें।

    -डॉ पूजा हेमकुमार अलापुरिया

Tuesday, March 10, 2020

ये रोजमर्रा की जिंदगी

रोजमर्रा की जिंदगी
हमें इतना उलझा देती है 
अपनों से मिलने के सुखद अवसरों को हाथ न आने देती है, पल-पल पर बहानेबाजी 
तो कहीं मानसिक थकान 
न कहलवा देती है, 
अपने कर्तव्यों और दायित्वों के तले, 
इतने सिमट कर रह जाते हैं कि वहां अपने नजर कहां आते हैं, कभी बच्चों की परीक्षाएं 
तो कभी अपनी व्यस्तता,
यूं ही सिलसिला जारी रहता है, 
तरह-तरह से आने मिलने का 
देते रहते दिलासा औ' सांत्वना, 
पर कभी!
पर कभी अपनों से मिलने का  
पल हमें न छू  पाता है, 
न जाने कितनी बार!
हां! न जाने कितनी बार 
बनती-बिगड़ती रहती 
योजनाओं की उधेड़बुन 
पर कहां ?
ताने - बानों में बुनी जिंदगी 
अपनों से मिलने की सुखद 
अनुभूति का स्वाद कहां लेने देती है,
रोजमर्रा की जिंदगी .....

कभी उनकी व्यस्तता 
तो कभी हमारी व्यस्तता 
अपनों से मिलने पर अंकुश लगा देती है,
ये रोजमर्रा की जिंदगी.....!

       डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया

मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

    मनुष्यता                                               -  मैथिलीशरण गुप्त  विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो...